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बहुत तीखा व्यंग्य बंधु।
चारों तरफ यही गंदगी तो बिखरी है और आपका स्वच्छता अभियान पसंद आया।
बढ़िया लेखक आसपास के वातावरण से सजग तो होता ही है , आप भी हैं।
बढ़िया लेखक का यह विशेषण छूटने मत देना ब्रदर
भई कमाल ही कर दिया भाई सतविंदर कुमार जी I अन्य शो'बों के इलावा साहित्यिक क्षेत्र में भी ऐसी हरकतें देखने को अक्सर मिल ही जाती हैं I लेकिन, इस रचना की जो मूल भावना है वह तो चालाकी, व्यवसायीकरण या जुगाड़ पंथी को दर्शाती है, इसको प्रदत्त विषय "आकांक्षा" के अनुरूप कैसे माना जाए ?
सर जी , आदरणीय सतविंदर जी की इस कथा में पात्र का नामचीन लेखक होने की आकांक्षा ही तो है जो यहां ,एक नए तरह भ्रष्टाचार का बढ़ावा दे रही है , तो क्या यहां आकांक्षाओं को पूरी करने की विसंगति रोपित नहीं हुई है ? भ्रमित हुई हूँ यहां, कृपया मार्गदर्शन करें।
हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर जी!क्या कहने!साहित्य जगत में भी बाज़र वाद हावी होता जारहा है!येन केन प्रकारेन लोग अपना उल्लू सीधा कर ही लेते हैं!शानदार लघुकथा!
आज की सच्चाई को बयां करती रचना के लिए बहुत बहुत बधाई | विवाद पैदा करके हिट कराने का तरीका काफी सफल है आजकल , आपको बधाई इस रचना के लिए
"हूँ क्या? फिर सोशल मीडिया पर कभी अच्छी और कभी बुरी टिप्पणी करते रहो और बाद में अपनी पुस्तक के विमोचन की तारीख निर्धारित कर दो।"
"फिर?"
"फिर क्या?बाकि काम देशभकक्तों ,या उस पन्थ जाति,क्षेत्र के ठेकेदार अपने आप कर देंगे.....सच्चाई बयां करती सार्थक कथा पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय सतविंदर जी ,कथा पर देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ,नेट समस्या
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