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बहुत ही प्यारी रचना विषय पर, सब रंग मिलकर ही सबसे बेहतर लगते हैं| बहुत बहुत बधाई आपको
जब सब रंग मिल जाते हैं तो स्वतः ही प्राकृतिक सुंदरता का बोध हो जाता है| रंगोली, इन्द्रधनुष आदि में रंगों का मिलन श्रेष्ठता ही तो है| इस सुंदर सकारात्मक रचना के सृजन हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय सुनील वर्मा भाई जी |
वाह वाह, क्या बात है सुनील जी, बातों बातों में रंगों को प्रतिक बनाकर बड़ी बात कह डाली, रंगोली तो तभी बनती है जब कई रंग साथ मिलें और साथ मिलकर ही खुशियाँ हासिल की जा सकती है, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.
आदरणीय सुनीलजी, आपकी लघुकथा देर तक बाँधे रखने में सफल है. बिम्बों का बहुत ही सटीक प्रयोग किया गया है. हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर सन्देश दिया है आपने इस लघु कथा के माध्यम से हर रंग का अपना अस्तित्व अपना महत्त्व है और सब रंग जब एक साथ मिल जाएँ तो वो ही सर्वशक्तिमान हो जाते हैं
हार्दिक बधाई आपको सुनील जी .
जीवन के रंग
दो बहनें,एक कोखजायीं वर्षों बाद मिलना हुआ. छोटी बहन की चकाचौंध देख बड़ी बहन की आँखें चुन्धियाँ गयीं. उसके ठाठ-बाठ और रंगीन जीवन को देख उसे ख़ुशी मिश्रित आश्चर्य हो रहा था. छोटी भी अपनी वैभव प्रदर्शनी में कोई कमी नहीं ही छोड़ रही थी, उसे महसूस हो रहा था कि सारे तीर निशाने पर लग रहें हैं. श्वेत-श्याम सी दीदी की जिंदगानी को फीकी करने हेतु वह अपने समृध ऐश्वर्यपूर्ण रहन-सहन के सारे पत्ते बिखेर चुकी थी. सुखों की पहाड़ पर बैठी वह अपनी बहन की निम्न स्तरीय जीवन शैली को मानों मुहं चिढा रही थी कि उसका पति जो कहीं बाहर गया था वापस आ गया. बड़ी साली उपस्तिथि से अनजान उसने अपनी पत्नी को आवाज दिया,
"देखो तुम्हे मंत्री जी के साथ कुछ दिनों के लिए सिंगापूर जाना होगा. इस बार उन्हें खुश कर लिया तो दिल्ली में फ्लैट पक्का"
अचानक पहाड़ी ढह गयी,उस टीले से लुढ़कते हुए छोटी के सारे रंग अचानक गडमड हो गए. श्वेत-श्यामल बड़ी ने देखा कि सारे रंग मिल कर काले हो गएँ हैं. उस काली बदबूदार आबो हवा में क्षण भर पहले चमकती बहन रंगहीन निस्तेज हो धराशाही औंधे गिरी हुई है.
(मौलिक और अप्रकाशित)
आदरणीया रीता जी, आपकी लघुकथा ने वाकई जोर का झटका दिया है. बहुत ही बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश जी
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