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आदरनीया सीमा जी, अति सुंदर लघुकथा, ऐसी एक समस्या मंगलीक होना भी है, ये अभी भी हमारे समाज में प्रचलित हैं
बहुत सकारात्मक सोच सीमा जी। शांता बुआ की कथा का अंत न जाने कितनी विधवाओं के दामनों को ख़ुशी के आंसूओं से भिगो जाएगा। कभी वृन्दावन जाएं तो देखिएगा वहां लाखों विधवाएं मौजूद हैं। काश सबका नसीब शांता बुआ जैसा होता। समाज को सही राह दिखाती रचना। बधाई
अच्छी कसी हुई लघुकथा कही है आ० सीमा सिंह जीI कथ्य-शिल्प की दृष्टि से उत्तम होने के इलावा इसमें जो सामजिक सन्देश देने का प्रयास किया गया है, वह भी बाकमाल हैI मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करेंI
मोहतरमा सीमा साहिबा , दिल को छू लेने वाली मार्मिक रचना के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ
आदरणीया सीमा जी, शानदार कथानक, उसका सफल निर्वाह और निहित सन्देश, इस लघुकथा को विशिष्ट बनाता है. इस शानदार प्रस्तुती पर आपको हार्दिक बधाई. सादर
सुन्दर संदेश युक्त ,सुन्दर कथा हेतु बधाई आदरणीय।
हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा सिंह जी!बेहतरीन लघुकथा!कितने सुखद आश्चर्य की बात है कि इस गोष्ठी में सबसे अधिक लघुकथा विधवा विवाह को आधार मान कर लिखी गई हैं!यह एक अच्छा संकेत है!
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