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मोहतरमा सविता मिश्रा साहिबा , रंग पर आधारित अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
कितनी जल्दी दिन ढलता है ,सविता जी। चेतन कितना बदल गया। इस चमक-दमक भरे रास्ते पर जो फिसलन है , उस का आभास आपकी रचना पढ़ कर सहज ही हो जाता है। दुर्गम राह पर लालटेन दिखाना लेखक का कर्तव्य है , आपने निभाया।
भाषा तथा मुद्रण आपका ध्यान मांगता है , अवश्य दीजिएगा।
हार्दिक बधाई आदरणीय सविता मिश्रा जी !बेहतरीन प्रस्तुति!
मुद्रण मतलब???....भाषा गअड़बड़ जयादातर लोग बोलते....ककौन सी बात सुधारे की भाषा भी सही हो जाये....कृपया बताएंगे आप !
लीजिए सविता जी ,
आपकी रचना से। आप पूछ रही थीं क्या सुधार किया जाए ?
वो = वे , पुस्तैनी = पुश्तैनी , जुंझला= झुंझला, " कोई आये हैं = कोई आया है , रशीद=रसीद , वो भी = वह भी ,नाम शोहरत पैसा=नाम, शोहरत और पैसा
बोल ही देती कि "यदि मैं = बोल ही देती "यदि मैं , फेसबुक ह्वाट्सएप न होता= फेसबुक और ह्वाट्सएप न होते , फर्क होता |= फर्क होता है |, पैसा मिलता |= पैसा मिलता है | " हाँ, कहीं नहीं = " कहीं नहीं , जैसे मैं टैक्स बचा = जिससे मैं टैक्स बचा , मोहन बाबु = मोहन बाबू। जिसे वह = जिन्हे वह
अच्छी लघुकथा है आ० सविता मिश्रा जीI बदलते हुए रंग-ढंग को सुन्दरता से परिभाषित किया है, हार्दिक बधाई स्वीकार करेंI
आदरणीय भैया डरते डरते ही पोस्ट की कक्योकी कांता दी इतना याद दिलाती रहती टीतो लगा ईस बaar तो समय से पोस्ट करें । समझ ही न आ रहा था कि क्या लिखे ....बस एनजीओ कौंधा टीतो ये लिखी जल्दबाजी* में ही । आपको अच्छी लगी तो अच्छी ही होंगी....आभार भैया ..सादर नमस्ते
सविता जी सत्य कहा आपने कथा में जितना बड़ा जूता उतनी पालिश शक्ल देख कर दान मिलता हैं दुनियाँ में सुंदर कथा बधाई
कई रंगों को समेटी सुंदर लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीया सविता जी।
समाज सेवा और आज के दान दाताओं पर सुन्दर कटाक्ष किया है आपने , अपने मर्म को सफलता पूर्वक संप्रेषित किया है कथा ने ,बधाई स्वीकार करें आदरणीया सविता जी
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