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सहज और सुन्दर कथा कसे हुए शिल्प के साथ , हार्दिक बधाई स्वीकार करें सीमा जी
ऐसे यज्ञ में आहूति डालना सच में सबसे बड़े पुण्यों में से एक है| सुंदर, सार्थक, सकारात्मक और समाज को एक दिशा दिखाती रचना के सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया सीमा सिंह जी|
सफलता का रंग
अमरजीत के गले में फूलों के हार के साथ सोने का मैडल भी चमक रहा था । उसके साथ उसके मुहल्ले तीन चार लोग गली में उस के साथ चल रहे थे । आज वह स्टेट के मुकाबलों में गोल्ड मैडल जीत कर घर वापस लौटी थी । जब उसने इस के मुकाबले के लिए जाना था, तब कोई भी टीचर उस के साथ जाने को तैयार न हुआ था। क्यूंकि वह पहली बार इतने बड़े शहर में जा रही थी । माँ बाप को फिक्र तो था पर वो भी खेती के काम में लगे रहते है, ऐसे जाने का कभी मौका ही नहीं मिला था । इस लिए उन्होंने उस को अकेले ही भेज दिया और कोई चारा भी नहीं था । मगर अमरजीत ने हौसला रखा और अकेले ही जा कर राज की राजधानी में मुकाबले में हिस्सा लिया और अपनी गेम में पहले स्थान प्राप्त किया, तो उसको गोल्ड मैडल प्रदान किया गया, राज के खेल मंत्री ने उस के गले में मैडल डालते हुए कहा:
“अब हमें अपने गाँवों से बहुत उमीदें है, अमरजीत ने छोटे से गाँव रामपुर का नाम रौशन किया है” ।
पर आज गाँव में उस के मुहल्ले के कुछ लोगों के बिना कोई भी और आदमी दुसरे मुहल्ले से उस के घर इतनी बड़ी जीत के लिए उसके माँ बाप को बधाई देने नहीं आया था, यहाँ तक के गाँव के पंच सरपंच भी नहीं ।
अमरजीत को लगा, जैसे मेरा नाम तो मेरे गाँव को मान दे गया हो, मगर मेरे गाँव के लोगों ने मेरी सफलता को कबूला ही न हो, फिर अमरजीत ने खुद से कहा “शायद मेरी सफलता का रंग भी मेरे गाँव की बाकी दुनिया के रंग से अलग है अभी तक इस लिए.... ।” ये कहते हुए उस की नजर नवंबर महीने में होने वाले राष्ट्रीय खेलों की तैयारी पे जा टिक्की ।
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"मौलिक व अप्रकाशित"
बात कुछ समझ नहीं आई आ० मोहन बेगोवाल जी कि आखिर क्यों गाँव के अधिकतर लोग उसे नज़रंदाज़ कर रहे हैं? लघुकथा में जब तक कथ्य को तथ्य का कुशन नहीं मिलता बात नहीं बनतीI स रचना पर दोबारा गौर करेंI
जनाब मोहन बेगोवाल साहिब , दिल को छू लेने वाली लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ
आदरनीय योगराज सर जी, लघुकथा में कुछ जगह में इशारे देने की कोशिश की है , मुझे नही लगता कि हर बात को सीधा कहा जाए, अगर मुझे इस सबंधी गाईड करोगे तो आप जी की मेहरबानी होंगी
मेरा कहना इतना सा ही है आ० मोहन बेगोवाल जी कि गाँव वालों ने इतनी बड़ी उपलब्धि के बावजूद भी अमरजीत की उपेक्षा क्यों की इसका कोई जायज़/नाजायज़ कारण तो होना ही चाहिए न? यही "कारण" वह "तथ्य" है जिसका कुशन "कथ्य" को मिलना चाहिए थाi
आदरणीय मोहन बेगोवाल सर, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर
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