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1222 1222 122
मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन

कहा जो सच तुम्हें दिल में चुभा क्या ?
बनी ये दोस्ती अब आइना क्या ?

कहो इस दिल में कोई आ बसा क्या ?
उसे तुम कर रहे हो अनसुना क्या ?

बुरा सपना समझ भूले जिसे थे
अचानक मोड़ पर वो फिर मिला क्या ?

सहन करती है बेटी त्रासदी जो
कभी उसका थमेगा सिलसिला क्या ?

परों को काट बेड़ी डाल दी क्यों
मेरी चाहत का है ये ही सिला क्या ?

बहुत गुमसुम हो, क्यों हो तुम रुआँसे ?
तुम्हें भी प्यार में उसने छला क्या ?

थिरकते हैं कदम मदहोश हो कर
भला चिठ्ठी में उसने ये लिखा क्या ?

दिये सपने मुझे, वो सच भी करते !
कभी तुमको समय इतना मिला क्या ?

बिखर जाते हैं रिश्ते एक पल में
मुहब्बत भी कहो, है बुलबुला क्या ?

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2016 at 11:56am

यह गजल भी खूब हुई है आ0 प्राची बहन हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 16, 2016 at 12:18pm

उम्दा  गजल  आ. प्राची  जी | बधाई  आपको -

रची सुंदर गजल ये आपने जो

बधाई दे रहे दिल से अभी हम |

Comment by TEJ VEER SINGH on February 15, 2016 at 1:34pm

 हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी!बेहतरीन  गज़ल!

सहन करती है बेटी त्रासदी जो
कभी उसका थमेगा सिलसिला क्या ?

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