For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ तुम बदलो, कुछ हम (लघुकथा)

एक पारिवारिक फिल्म घर पर ही देखने के बाद दोनों के चेहरे ऐसे मुरझा गये थे, मानो फ़िल्म ने उन्हें आइना दिखाकर शर्मिन्दा कर दिया हो!
कुछ पलों के बाद वह उसके पास जाकर बैठ गया। लम्बी चुप्पी के बाद मन के भाव बह पड़े।
" सच है कि मैं तुम्हें कभी ख़ुश नहीं रख सका, और न ही तुम मुझे!"
वह चौंककर उसकी तरफ़ देखती रही, फिर बोल पड़ी, "मालूम है, बच्चों की वज़ह से तुमने मुझे तलाक़ नहीं दी, वरना..."
"वरना क्या? उस वक़्त मेरी माली हालत अच्छी नहीं थी, मेरी पसंद की कोई दूसरी मुझसे निकाह कैसे करती?"
"मिल तो बहुत जातीं, ये कहो न कि बच्चों का मोह था और मुझे यह रिश्ता झेलना पड़ा!"
"पर अब तो बच्चों के अपने-अपने घर भी बस गये हैं, हमारे झगड़ों की वज़ह से उन्हें अब हमसे कोई मतलब भी नहीं रहा! तो...."
"तो क्या, अब करना चाहते हो दूसरी शादी?"
"हाँ, यही कहना चाह रहा था, काश कोई ऐसा रास्ता हो कि तुम्हें तुम्हारे मन का और मुझे मेरे मन की जीवन साथी मिल जाये, और..."
"और क्या?"
वह एकदम झुंझलाकर बोल पड़ा, "सानिया, ज़िन्दगी अभी तो बहुत बाक़ी है न! दस या बीस साल हम साथ-साथ भला कैसे गुज़ारेंगे?"
"मैंने तो हमेशा कहा कि तुम अपनी पसंद की ख़ूबसूरत सी ज़हीन लड़की से निकाह कर लो, मेरी तो इस सरकारी नौकरी के भरोसे कट ही जाती, तुमसे कभी कुछ नहीं मांगती !"
"हाँ, सच कहा, तुम्हारे लिए तो तुम्हारी नौकरी ही हमेशा अहम रही है, मैं और मेरा बिजनेस कतई नहीं! काश तुम्हारी शादी भी तुम्हारी पसंद के उस असलम से ही होती, तो..!"
"मैं भी बोलूं!" बीच में ही सानिया ने कहा, " तुम्हारे दिलो-दिमाग़ में जब वो जुबेदा ही चढ़ी हुई थी, तो मुझे क्यों ढोया, रख लेते बच्चों को अपने ही साथ!"
"मैं, बच्चों को न तो तुम्हारे प्यार से महरूम रखना चाहता था और न ही मेरे, पर अब तो बच्चे भी हमें प्यार नहीं करते न, तो..."
"ये अमेरिका नहीं है जनाब, न कोई फ़िल्मी दुनिया! आज के मुसलमान दूसरे, तीसरे निकाह की नहीं सोचा करते निसार साहब, काट लेंगे ये दस-बीस साल भी, कुछ तुम बदलो, कुछ हम, बस !"

[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 547

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 6, 2016 at 7:22pm
ब्लोग पोस्ट का अवलोकन करने व प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय रामबली गुप्ता जी।
Comment by रामबली गुप्ता on March 17, 2016 at 6:30am
बहुत सुंदर लघुकथा आ. शाहज़ाद जी
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 16, 2016 at 8:37pm
रचना पर उपस्थित हो कर. अपने विचार व्यक्त करने व प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय पवन जैन जी।
Comment by Pawan Jain on March 16, 2016 at 11:29am

वाह ,इतनी समझदारी  आ जाये तो तलाक शब्द ,शब्द कोष से मिटा जाये ।बधाई सुंदर कथा हेतु आदरणीय शहजाद जी ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 15, 2016 at 8:03pm
मेरी इस ब्लोग पोस्ट लघुकथा विषयक अपने सार्थक विचार साझा करते हुए मुझे प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया राहिला जी, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आदरणीय तेज वीर सिंह जी व आदरणीया नयना आरती कानिटकर जी।
Comment by नयना(आरती)कानिटकर on March 15, 2016 at 2:29pm

आ.उस्मानी जी बहूत सुंदर लघुकथा . कई रिश्तों को ना चाहते हुए  भी निभाना पडता है.
"आज के मुसलमान दूसरे, तीसरे निकाह की नहीं सोचा करते निसार साहब, काट लेंगे ये दस-बीस साल भी, कुछ तुम बदलो, कुछ हम, बस !" एकदम सटिक बात कही आपने

Comment by TEJ VEER SINGH on March 15, 2016 at 12:40pm

 हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी!अच्छा व्यंग किया है समाज के उसूलों पर!बेहतरीन प्रस्तुति!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 15, 2016 at 11:55am

इस कथा पर सब कुछ कुर्वान ..........

Comment by Rahila on March 15, 2016 at 11:02am
बहुत ही सार्थक, और अच्छा संदेश देती रचना । लेकिन ये भी सच है कि ऐसे रिश्तों को ढोया जा सकता है जिया नहीं जा सकता । बहुत शानदार लेखन आदरणीय उस्मानी जी! सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  ______ जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार। जेब सोच में पड़ी हुई है,कैसे पाऊँ…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"चार पदों का छंद अनोखा, और चरण हैं आठ  चौपाई औ’ दोहा की है, मिली जुली यह ठाठ  विषम…"
10 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद : रौनक  लौट बाजार आयी, जी   एस   टी  भरमार । वस्तुएं …"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम..."
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Oct 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service