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लच-लचक-लचक लचकाय चली,
कटि-धनु से शर बरसाय चली।
कजरारे चंचल नयनों से,
हिय पर दामिनि तड़पाय चली।।1।।

फर-फहर फहर फहराय चली,
लट-केश-घटा बिखराय चली।
अलि मनबढ़ सुध-बुध खो बैठे,
अधरों से मधु छलकाय चली।।2।।

सुर-सुरभि-सुरभि सुरभाय चली,
चहुँ ओर दिशा महकाय चली।
चम्पा-जूही सब लज्जित हैं,
तन चंदन-गंध बसाय चली।।3।।

लह-लहर-लहर लहराय चली,
तन से आँचल सरकाय चली।
नव-यौवन-धन तन-कंचन से,
रति मन में अति भड़काय चली।।4।।

झन-झनन-झनन झनकाय चली,
पायल-चूड़ी खनकाय चली।
हिय के हर तार झंझोर सखे!
नव-प्रेम-राग सिरजाय चली।।5।।

रचनाकार-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 12, 2016 at 10:30am

बहुत सुन्दर शृंगारिक गीत आ० रामबली जी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2016 at 8:48pm

आपकी द्रुत प्रतिक्रिया और तदनुरूप आवश्यक संशोधन ने आपके प्रयास की गहनता के प्रति आश्वस्त किया है, भाई रामबली गुप्ताजी.

हार्दिक धन्यवाद 

Comment by रामबली गुप्ता on April 8, 2016 at 8:48pm
रचना पसंद करने के लिए हृदयतल से आभार आदरणीय केवल सर
Comment by रामबली गुप्ता on April 8, 2016 at 8:41pm
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से मन बहुत ही प्रसन्न है आदरणीय सौरभ सर हृदयतल से आभार आपका। शीर्षक की त्रुटि टंकण त्रुटि के कारण है। संशोधन कर चुका हूँ।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 8, 2016 at 8:37pm

इस अनूठी और सुंदर रचना के लिये हार्दिक बधाई. आ० रामबली भाईजी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2016 at 7:51pm

रचना के शीर्षक की अक्षरी शुद्ध कर लें. शुद्ध शब्द शृंगारिक होता है जैसा कि आदरणीय सुशील सरनाजी ने उद्धृत किया है. ऐसे विन्दुओं के प्रति सचेत रहना रचनाकर्म में गंभीरता की आश्वस्ति है.

रचना अच्छी बन पड़ी है. मात्रिकतः संयत और सहज रहने का पूरा प्रयास हुआ है. इसके लिए हार्दिक बधाइयाँ. भावों का शाब्दिक होना सतत प्रयास से और सान्द्र होता जायेगा.  

शुभेच्छाएँ 

Comment by रामबली गुप्ता on April 7, 2016 at 7:18pm
रचना पर आप सभी की सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार आदरणीय सुशील सरना जी, आदरणीय लक्षमण धामी जी एवं आदरणीय समर कबीर जी। सादर अभिनंदन
Comment by Samar kabeer on April 6, 2016 at 6:10pm
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,सुंदर रचना हुई,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 6, 2016 at 11:14am

बहुत सूंदर ............

Comment by Sushil Sarna on April 5, 2016 at 8:12pm

झन-झनन-झनन झनकाय चली,
पायल-चूड़ी खनकाय चली।
हिय के हर तार झंझोर सखे!
नव-प्रेम-राग सिरजाय चली।।5।।

नमन आदरणीय रामबली गुप्ता जी इस दिलकश शृंगारिक प्रेम रचना की प्रस्तुति पर आपको दिल से बधाई। हर बंध पाठक को बाँध के रखता है। इस अनुपम अप्रतिम प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

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