आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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मोहतरमा बबिता साहिबा , सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आदरणीया बबिता जी, आपका अभ्यास सतत बना रहे.. आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक धन्यवाद
शुभेच्छाएँ
संवादों से लग रहा था कि कोई थियेटर ड्रामा चल रहा है, अंत तक आते-आते पता भी चल ही गया| अच्छे भावों के साथ सृजित की गयी इस रचना हेतु सादर बधाई स्वीकार करें, हालाँकि यह लग रहा है कि पाठकीय दृष्टि से रचना में सुधार की और गुंजाईश है| सादर,
' तमाशबीन;'
"लगता है सामने वाले मकान में आज फिर कुछ लफड़ा हुआ हैI चार पांच पुलिस वाले मोटर साईकिलों में आये हैं I" चार नंबर बंगले वाले मेहता साहेब ने कार धोते शर्मा जी से धीरे से कहा I
एक नंबर वाले शर्मा जी मेहता साहब के पास आ गए "हाँ ,मैंने भी देखा ऊपर बालकोनी से I तभी गाडी धोने के बहाने यहाँ खड़ा हूँ Iपिछले हफ्ते भी तो पुलिस वाले आये थे जीप में , वाइफ बता रही थी "I
" माँ बाप और एक जवान बेटी है Iशादी शुदा ,तलाकशुदा या कुंवारी ,कुछ पता नहीं I देहाती किस्म के लोग हैं , बेटी भी दबंग लगती है I"मेहता साहब ने अपना ज्ञान साझा किया शर्मा जी से I
"दबंग या फूहड़ ?, कैसे कैसे लोग आकर बस गए हैं हमारी इस सभ्य कॉलोनी में "Iशर्मा जी ने मुहँ बिचकाया I
आस पास के घरों से भी तीन चार लोग आ गए थे जिन्हें अचानक बगीचे में पानी देने या गाड़ी धोने का काम याद आ गया था I
"लड़की करती क्या है ?" शर्मा जी ने धीरे से पूछा I
"झुग्गी के बच्चों के बीच काम करती है I समाज सेविका है Iवैसे ऐसे मुखौटे गलत काम करने वाले भी आजकल ओढ़े रखते हैंI पता नहीं क्या चल रहा है ?"
" मेहता साहब गेट के सामने बेंच पर बैठने ही जा रहे थे कि फिर सतर्क हो गए I
सामने के घर से लड़की चार पाँच पुलिस वालों के साथ बात करती बाहर निकल रही थी I पीछे उसके पिता थे I टोह लेती चार पाँच जोड़ी आँखे कुछ समझ पातीं ,उससे पहले पुलिस वालों के साथ बाइक में बैठ वो चल दी I
हताश मेहता साहब से अब रहा नहीं गया I घर के अन्दर लौटते पिता को आवाज़ लगा दी I
" भाई साहब ,सब ठीक है ना ? पिछले हफ्ते भी पुलिस वाले आये थे I हम पडौसी हैं ..कोई समस्या.." I
" अरे नहीं " बात बीच में काट दी उन्होंने " कोई समस्या नहीं ,I ये सब तो नीता के दोस्त हैं , बैच मेट I एक हादसे में पैर कटने से इसे पुलिस की ट्रेनिंग बीच में छोडनी पड़ी थी Iघुटने के नीचे दाँया पैर नकली है I पर हारी नहीं ,दिन रात लगी रहती है झुग्गी के बच्चों को संवारने में I इसके दोस्त भी मदद करते हैं I" आवाज़ का गीलापन साफ़ छिपा गए वो I
"जी ..जी " गले में पता नहीं कहाँ आवाज़ अटक गई थी मेहता साहब की I
तमाशे की आस में फूला गुब्बारा अब फूट चुका था I गाड़ियों, बागीचों के बाद पानी पानी होने की बारी, अब एक दूसरे से आँखे चुराते तमाशबीनों की थी I
मौलिक व् अप्रकाशित
हार्दिक आभार आदरणीय विजय शंकर जी सादर
वाह। बहुत बढ़ीया कथा कही है आपने आदरणीय /एक हादसे में पैर कटने से ...... इसके दोस्त भी मदद करते हैं।/ अंत में ये पंक्ितयां पाठक को एकदम से झंकृत कर देती है। आपको हार्दिक शुभकामनाएं
प्रयास पर उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय रवि प्रभाकर जी
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