आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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“अमन चैन तो ठीक है, मगर समाचार का मज़ा नहीं आया आजI”
पंच लाइन खुल कर बता रही है कि तमाशबीन रूबरू ही नहीं टीवी नेट पर भी तमाशा देखने के लिए कितने लालायित रहते हैं नया मसाला चाहिए मजे लेने के लिए तभी तो इनकी टी आर पी भी बढ़ती है और तमाशबीन भी संतुष्ट हो जाते हैं प्रदत्त विषय से न्याय करती हुई इस लघु कथा के लिए दिल से बधाई आ० योगराज जी |
हमेशा की तरह हर तरह से कबीले तारीफ व विषय को न्यायदेती सुंदर लघुकथा। बधाई स्वीकार करे आदरणीय योगराज प्रभाकरजी।
उस दौर में कश्मीर से अल्पसंख्यकों का पलायन सच में दुखद घटना थी , दूर बैठ कर अपने प्रदेश के अमनचैन से ज्यादा कुछ ज्वलंत खबर की चाह ,क्या खूब तमाशबीनी की तस्वीर खींची है आपने आदरणीय ..दिली बधाई स्वीकार करें आप
aadrniya bas itna kah sakte hei ek or path ham jeiso ke liye sabd vinyas ke liye
badhai tamashbin to samachar bhi isi liye dekhte hei
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी!शानदार प्रस्तुति!आपकी लघुकथा का मूल्यांकन करना हमारी क्षमता और सामर्थ्य से बाहर है!एक जगह कुछ चूक हो गयी है शायद!तीसरे पैरा की दूसरी पंक्ति में "उत्सुकता के भाव कई गुना बढ गये" होना चाहिये!सादर!
सभी मित्रों का धन्यवाद, इंगित त्रुटियाँ ठीक करने का अवश्य प्रयास करूँगा I
आदरणीय आपकी कथा सब से अलग और बहुत कुछ सिखाती है | आज भी तो यही सब हो रहा है जो आपने यहाँ लिखा है | कितना कटु सत्य है यह , की समाचार में मजा नहीं आता जब तक उसमें बुरी खबर न हो | बधाई स्वीकारें आदरणीय |
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आ० कल्पना भट्ट जीI
दिल से शुक्रिया आ० डॉ विजय शंकर जी .
आपकी रचनाओं पर कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है, आदरणीय सर| नमन आपको अपनी एक और रचना से हम सभी को लाभान्वित करने हेतु|
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