आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय कुमार जी, प्रदत्त विषय से बहुत दूर लग रही है यह प्रस्तुति. अब परंपरा को तो षड्यंत्र नहीं माना जा सकता न. सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई. सादर
iआदरणीय कुमार गौरव जी ,मैंने आपकी कथा कल ही पढ़ ली थी पर प्रदत्त विषय से जोड़ नहीं पाई थी ,पर आज जब पढ़ी तो दंग रह गई ,कितने महीन ढंग से आपने प्रदत्त विषय को छुआ है , माता पिता द्वारा प्रेम में पगा षड्यंत्र // वो भी पापा को बहुत प्यार करती थी । हमेशा वो कहते राजा बेटा ये कर दो , वो कर दो और वो खुशी खुशी करती रहती // और फिर जब इस षड्यंत्र का भांडा फूटा // पापा बोले " बेटियों को दूसरे घर जाना होता है तुम यहाँ नहीं रहोगी बल्कि तुम्हें वहाँ जाना होगा जहाँ तुम्हारी शादी होगी । // और अंत में एक नए षड्यंत्र की आहट // गुडिया को गोद से उतारा और कहा " राजा बेटा बुआ के लिए किचन से एक ग्लास पानी ले आएगी । "// ढेरों बधाई आपको इस कथा पर
"
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
भाई गौरव जी, आपकी दृष्टि ने वह कुछ महसूस कर लिया जिसे सामान्य ढंग में कोई समझ नहीं पाता. कई षडयंत्र सामाजिकता और परिपाटियाँ करवाती हैं. हम चाहते हुए सामान्य अवस्था में विलग नहीं पाते.
आपकी संवेदनशीलात के प्रति मन में आदर के भाव बने हैं. शुभ-शुभ
वैसे आपका आयोजन में दुबारा आना नहीं हुआ है अबतक. हम्म !
प्रिय गौरव , आपको बुरा तो लगेगा मगर इस रचना को विषय से नहीं relate कर पा रहा। कुछ तो गड़बड़ है। आपकी रचना में भोली और मासूम कन्या सी सादगी है , गहरी संवेदना भी।
लघुकथा तो अच्छी है किन्तु प्रदत विषय से इतर ...
दाहिना हाथ
मिश्रा जी उम्मीद लगाए बैठे थे कि गुप्ता जी के रिटायरमेंट के बाद वे प्रांतीय संपादक बन जाएंगे। गुप्ता जी ने उन्हें आश्वासन भी दे रखा था, '' आने दीजिए समूह संपादक जी को, मैं बात करूंगा। आप ही इस कुर्सी के योग्य हैं।''
'' गुप्ता जी, आप अपनी कुर्सी के योग्य किसे समझते हैं ?'' विदाई समारोह में आए समूह संपादक ने गुप्ता जी से राय ली।
'' एक यादव लड़का है। बड़ा ही मेहनती। मैं चाहता हूं कि उसे ही मेरा काम दिया जाए।''
'' हूं ... ! मिश्रा जी क्यों नहीं ? वे तो आपका दाहिना हाथ रहे हैं।''
'' नहीं, साहब। वे इस पद के कतई योग्य नहीं हैं। मैं तो उन्हें झेलता रहा। वे किसी काम के नहीं हैं। मैं तो कहूंगा कि उन्हें प्रांतीय से हटाकर ब्यूरो में कर दिया जाए। बाकी आपकी जैसी इच्छा। ''
मौलिक व अप्रकाशित
यह बहुत खेद का विषय है कि हमारे समाज में आज भी एक षड्यंत्र के तहत जातीय आधार पर पक्षपात किया जाता है, आपने उसी पक्ष को अपनी लघुकथा का विषय बनाया है आ० नीता सैनी जीI रचना प्रदत्त विषय के साथ पूर्ण न्याय कर रही है, जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई प्रेषित हैI
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