आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय मोहन जी , दो तीन आयोजनों में आपकी रचनाएँ पढ़ने का मौका मिला। हर बार यही महसूस हुआ कि आप मूलत: पंजाबी भाषा के रचनाकार हैं और हिंदी भाषा में बहुत शिद्द्त से प्रयत्न कर रहे हैं। आपको बेहद मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है , मगर आप धारा के विपरीत तैरने के लिए जूझ रहे हैं , बिना हार माने। यह जोश हमारे लिए अनुकरणीय है , जो किसी और भाषा में जोर -आजमाइश नहीं करते।
दूसरी बात : आपकी यही रचना बहुत ही प्रभावशाली हो सकती थी अगर समय होता आपके पास। आप सोने का बिस्कुट लिए घूम रहे हैं मगर यह स्थान आभूषणों का है। अंगूठियों , मंगल-सूत्र और कर्णफूलों का। अपने वाक्यों को आप रि अरेंज कीजिए और फिर देखिए आपकी रचना किस तरह विषयाधारित हो कर प्रभाव छोड़ती है । क्षेत्रीय भाषाओँ का और खास कर पंजाबी का तड़का रचनाओं को विशिष्ट बनाता है मगर वे शब्द आम पाठक के समझ आने चाहिए , अन्य भाषा के होने के बावजूद।
आशा है मेरा निवेदन आप तक पहुँच गया होगा।
सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई सादर
क्या आपने आयोजन की उद्घोषणा को और प्रदत्त विषय को ध्यान से देखा था भाई सुरेश कुमार कल्याण जी? रचना विषयाधारित न होने के कारण आयोजन से हटा दी गई हैं, आप उसे ब्लोग्स में पोस्ट कर सकते हैंI
तसल्ली
"पिताजी! क्या हुआ?" उसने आश्चर्य से पूछा| उसके पिता पलंग से उठकर जैसे ही चलने लगे थे कि लड़खड़ा गये, वो तो उन्होंने तुरंत ही पास की दीवार का सहारा ले लिया नहीं तो ज़मीन पर गिर जाते|
"मैं बिलकुल ठीक हूँ बेटा... मुझे कुछ नहीं हुआ, बस हल्का सा बुखार है, उससे चक्कर आ गये|" पिता ने मुंह से गहरी सांस भरते हुए धीमे स्वर में कहा और सहारा लेकर पलंग पर बैठ गए|
"पानी पी लीजिये..." तब तक वह पानी का एक ग्लास भर कर ले आया था, कहते हुए उसने तकिये के नीचे रखी अपने पिता की चिकित्सीय जांच की रिपोर्ट हाथ में ले ली| उसके पिता ने रिपोर्ट छिपा रखी थी, उसके हाथ लगते ही उनका चेहरा सफ़ेद पड़ गया|
रिपोर्ट के अनुसार उसके पिता का लीवर लगभग समाप्तप्रायः था, उसने अपने पिता की तरफ देखा, पलंग के नीचे ज़मीन पर बैठ कर उसने अपने पिता का हाथ अपने हाथ में लेकर भर्राये गले से कहा, "पापा, बचपन में जब मुझे गंभीर पीलिया हुआ था तब भी आप यही कहते थे कि, बेटा तू बिलकुल ठीक है, तुझे कुछ नहीं हुआ... और मैं ठीक हो गया... पापा, शब्दों की यह साजिश इस बार भी काम करेगी ना?"
(मौलिक और अप्रकाशित)
आदरणीय चंद्रेश जी बहुत शानदार लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई
शब्दों का भ्रम या शब्दों का षड्यंत्र ?
चलते -चलते बेहद मार्मिक लघुकथा लेकर आये है आप आदरणीय चंद्रेश जी , कल से ही आपको याद करती रही . अच्छा लगा इस तरह से आना आपका . व्यस्तता की विवशता मैं समझ सकती हूँ . बहुत -बहुत बधाई आपको इस सार्थक लघुकथा के लिए .
वाह वाह,बहुत खूब भाई चंद्रेश जी - देर आयद दुरुस्त आयद ! हार्दिक बधाई स्वीकारें !
“ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी” अंक-14 को अपनी रचनाओं व विषद समीक्षात्मक टिप्पणियों से सफल बनाने हेतु सभी आदरणीय साथिओं का हार्दिक आभारI अब अगली मुलाकात इसी गोष्ठी के 15 वें अंक में 29 से 30 जून 2016 को होगीI
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