आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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अच्छा प्रयास है आ० मनन कुमार सिंह जीI लेकिन सब कुछ आप ही क्यों कह दिया? कुछ पात्रों के कहने को भी छोड़ दिया जाना चाहिए था, क्योंकि पूरी कथा सपाट-बयानी में तब्दील हो गई हैI बहरहाल, सहभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकार करेंI
जनाब मनन साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आदरणीय मनन जी, सुन्दर कथा. रश्मि के आक्रोश को समझने में परेशानी हो रही है. सादर.
आ. मनन जी सभी वरिष्ठ जन प्रतिक्रिया दे चूके है. आपके आगे के लेखन हेतू बधाई प्रषित है.
वाह | इस सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी |
'असली दोषी कौन?' - (लघुकथा)
तथाकथित समाजसेवियों, धर्म गुरुओं, नेताओं और संस्कृति प्रेमियों के तानों, फ़तवों व विरोध-रैैलियों से त्रस्त होकर वे चारों एक विचार गोष्ठी करने के लिए विवश हो गए। सवाल था कि बढ़ते यौन- अपराधों के लिए आख़िर ज़िम्मेदार कौन है?
आरोपों, प्रत्यारोपों से त्रस्त 'अश्लीलता' स्वयं को स्वतंत्र, शील व शालीन बता रही थी। 'फ़ैशन' स्वयं को सामाजिक आवश्यकता और विश्व-बंधुत्व की कड़ी, कलात्मक, प्रगतिशील और संस्कृति की बहती गंगा-धारा सिद्ध कर रहा था। 'मीडिया' हमेशा की तरह स्वयं को 'समाज का ही दर्पण' कहकर किनारा कर रहा था। 'फ़िल्म-जगत' इन तीनों के विचारों और सिद्धांतों का समर्थन करते हुए स्वयं को 'समाज सुधारक' और 'जन-जागरण का सशक्त माध्यम' घोषित करने पर तुला हुआ था। तो फिर प्रश्न यही उठा कि भारतीय समाज के नैतिक पतन के लिए आख़िर दोषी कौन है?
"आप लोगों ने सुना नहीं! बड़े-बड़े विद्वान और चलचित्र निर्माता-निर्देशक तक कहते हैं कि शील और अश्लील तो देखने वाले की नज़र पर निर्भर होता है!"- 'अश्लीलता' ने 'फ़ैशन' की ओर देखते हुए कहा। 'मीडिया' मुस्कराने लगा। 'फ़िल्म-जगत' ने तालियाँ बजाते हुए कहा- "बिलकुल सही बात! हम कथा, पटकथा और पात्र समाज से ही लेते हैं, जो देखते हैं वही तो दिखाते हैं!"
अब बारी मज़बूत स्तंभ 'मीडिया' की थी। अपना मत व्यक्त करते हुए उसने कहा- "लोग मुझ पर ही आरोप लगाते रहते हैं। अरे, जो हो रहा है, वही तो खुलकर दिखायेंगे, वही लिखेंगे! वैसे भी हम सदैव समाज की माँग के अनुसार ही परोसते हैं! हम पीछे नहीं, दुनिया के साथ-साथ आगे जाएंगे!"
फिर सभी ने एक सुर में कहा- "आख़िर हम सभी व्यवसायी हैं, व्यवसाय के सिद्धांत पर चलना ही होता है, वैश्वीकरण के दौर में उपभोक्ता की पसंद का उत्पादन करना क्यों बुरा है?"
गोष्ठी में अपनी बारी पुनः आने पर 'अश्लीलता' ने कुछ उग्र होते हुए कहा- "बढ़ते यौन अपराधों के लिए मैं कतई ज़िम्मेदार नहीं, पूरा दोष शिक्षा जगत और शिक्षण पद्धति का है! लोगों की कुंठायें दूर करिये, यौन-शिक्षा और यौन-स्वतंत्रता दीजिए!"
"इस काम को तो हम ही बख़ूबी अंजाम देते हैं!" बीच में ही बोलते हुए 'फ़िल्म-जगत' ने कहा- "आप स्वयं देखिए, हमारी बदौलत ही भारतीय समाज में खुलापन आया है, देर है अंधेर नहीं! जैसे-जैसे स्वतंत्रता, आत्म-निर्भरता बढ़ेगी, अपराध कम होते जाएंगे, ये बढ़ता क्रम शीघ्र ही घटता क्रम हो जायेगा!"
"यही तो हमारा सोच है!"- 'फ़ैशन' और 'मीडिया' ने एक स्वर में कहा।
फिर 'मीडिया' बोला- "हर कोई धनोपार्जन करना चाहता है। इसके लिए हम तीनों भी सदैव कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं !"
"हाँ बिलकुल, जब तक जनता हमारे साथ है, तब तक ही न!" - व्यग्रता के साथ 'फ़ैशन' ने कहा।
"अच्छा, चर्चा समाप्त करते हुए अब यह बताइये कि असली दोषी कौन कहलाया!" -'अश्लीलता' ने गोष्ठी का मुख्य प्रश्न पुनः पूछा!"
"यौन अपराधों और नैतिक पतन के लिए स्वयं भारतीय नागरिक ही ज़िम्मेदार हैं, हम में से कोई नहीं!"- 'फैशन','मीडिया' और 'फ़िल्म-जगत' ने बहुत उग्र स्वर में कहा- "हम जनता से हैं, जनता हमसे नहीं!"
[मौलिक व अप्रकाशित]
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