आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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बेबसी में उफनता आक्रोश कुकृत्यके पश्चात , परिस्थितिवश स्वयं को ही उसके घेरे में पाकर ,अंतर्मन में लड़ता , सहता आखिर अपनी जीत कायम करता है . आपकी कथा का सौन्दर्य कथ्य का सकारात्मकता की ओर इशारा देकर छोड़ना ही है . आपकी लघुकथाओं की अपनी विशिष्ट शैली है जो आपको दुसरे कथाकार से अलग मुकाम देती है . बहुत बहुत बधाई आपको इस सार्थक लघुकथा के लिए आदरणीय सुनील जी .
अरे वाह वाह वाह भाई सुनील वर्मा जी, क्या खूबसूरत अंदाज़ से आक्रोश विषय को परिभाषित किया हैI आनंद आ गया, इस बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति पर शाबाशी और बधाईI
गुस्से में किया कृत खुद के सामने आ गया।बहुत अच्छे लेखन के साथ ,सार्थक रचना के लिए बहुत, बहुत बधाई आपको।सादर
वाह आद०सुनील वर्मा जी,आक्रोश को व्यक्त करने का शांत अंदाज़,सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे.यह अलग बात है कि सांप उसी के गले पड़ गया.सुकून देती रचना.
आदरनीय सुनील जी बहुत ही सुंदर अंतर्द्वंद्व की अभिव्यक्ति हुई है. बधाई आप को इस लघुकथा के लिए.
उफ्फ ...आक्रोश में इतना घ्रणित काम पढ़कर ही दिल खराब हो रहा है सच कहते हैं कि डॉक्टर और कुक से कभी पंगे नहीं लेने चाहिए ...सच ही कहते हैं .प्रदत्त विषय को सार्थक करती इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई सुनील जी .
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