आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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वह कौन?
वह अपने रास्ते से जा रहा था उसे आगे जाने की जल्दी थी लेकिन भीड़ के कारण वह चल नहीं पा रहा था। किसी तरह ठेल-ठाल कर वह आगे बढा। आगेक्रासिंग केपास एक दुर्घटना हुई थी एक व्यक्ति अपनी मोटर साईकिल से गिर कर घायलावस्था में पड़ा था। लोग उसे देखकर अपने राह चले जा रहे थे कुछ सहानुभूति दिखा रहे थे तो कुछ उदासीन भी रह रहे थे। इतने में यह व्यक्ति उसके पास पहुंचा। उसने जब घायल को देखा तो पहचान गया वह उसके ही मुहल्ले का रहने वाला था लेकिन उनके आपस में पारिवारिक मनमुटाव चलता था। उनके बीच में मुकदमें बाजी चल रही थी।
उसने बिना कुछ सोचे समझे एक रिक्शा रूकवाया और घायल को लेकर अस्पताल पहुंचा। डाक्टर से मिल कर उसकी दवा की व्यवस्था की। उसके बाद उसने उस घायल के घर वालों को उस दुर्घटना की खबर की। अस्पताल में इलाज चलने लगा। अस्पताल के डाक्टर व नर्स घायल की तीमारदारी में लग गये।
कुछ देर बाद उसके मां-बाप आ गये । अस्पताल में कर्मचारियों से पूछ कर वार्ड में गये और अपने लड़के को देखा। वह बुरी तरह घायल था। जगह-जगह पट्टियां बंधी थीं। अपने लड़के से घटना के बारे में जानकारी ली। उसने बताया की घटना वाली जगह पर भीड़ से बचने के प्रयास में मोटर साईकिल फिसल जाने के कारण वह गिर गया और घसीटते हुए काफी दूर चला गया। भीड़ में से किसी ने उसकी मदद नहीं की । यदि उस व्यक्ति ने जो वहां अकस्मात ही आया था उसकी मदद न की होती तो वह अब तक कभी का मर गया होता। यह सुनकर उसके मां-बाप का कलेजा मुंह को आ गया। लेकिन उस अजनबी को देखने के लिए वे व्यग्र हो गये। तभी वह दवा का पैकेट लेकर आता दिखा।
लड़के में बाप ने पहले पहल उसे देखा और पहचान लिया िकवह तो उनके विरोधी का लड़का है जिसके घराने से उनका पुराना वैर है और मुकदमे बाजी चल रही है। पास आने के बाद उसकी मां ने भी पहचाना। दोनों के मुंह खुले रह गये। क्योंकि उस परिवार के किसी सदस्य के द्वारा उनकी मदद किया जाना असंभव था। लेकिन यह अनहोनी हो गयी थी। बा पके आंख में आंसू भर आये । नजदीक आने पर उसने भी उनलोगों को देखा । पहले दवा का पैकेट घायल के पास रखा और तब उनके पास आया। उसने बताया िकवह वहां अकस्मात पहंच गया उसे कहीं और जाना था लेकिन जब देखा कि यह घायल हो गया है तो उसे अस्पताल पहुंचा कर आप लोगों को खबर किया। अब आप देखरेख करे। मुझे अपने काम से जाना है उसमें देर तो हो गयी है लेकिन वहां क्षमा मांग लूंगा।
उस घायल के बाप ने कहा कि बेटे क्षमा तो अब मुझे आपके बाप से मांगनी है और अपने किये का पाप का प्रायश्चित करना है । में कल ही आप के परिवार पर कायम किये मुकदमें को वापस कर दूंगौ । जिसके करने से मंेरा बेटा बच गया उसके लिए मेैं कैसे प्रायश्चित करूं यही सोच कर मैं शर्मिंदा हूं।
उसने कहा कि देखिए यह तो मेरा कर्तव्य था। उसमें ऐसा कुछ नही है कि आप अफसोस करे।
मौलिक और अप्रकाशित
आपकी कथा प्रदत्त विषय को संतुष्ट कर रही है ,जिसके लिए बधाई प्रेषित है आपको , पर शिल्प में कसावट की आवशयकता है आ० इंद्र विद्या वाचस्पति तिवारी जी [ आशा है आपका नाम सही लिखा है मैंने ]
हार्दिक बधाई आदरणीयindravidyavachaspatitiwari ! सुंदर प्रस्तुति!
शिल्प और कहन के दृष्टिकोण से बेहद कमज़ोर रचना है, इसपर बहुत मेहनत करने की आवश्यकता हैI सहभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकार करेंI
अच्छी लघु कथा बहुत बहुत बधाई आपको आद० इन्द्र्विद्या जी
आ० इंद्र विद्या वाचस्पति तिवारी जी सहभागिता के हेतु बधाई स्वीकार करे. गुरुजनो की बात पर घ्यान देकर लिखते रहे.
लघुकथा- अनुकरण
बेटे ने माँ को घर से निकाला था , तब प्रमिला के पास कुछ नहीं था. आज ३० कमरे और ३०० साथियों के साथ वह अपने मुहीम में लगी हुई थी. उस के लक्ष्य था अपनी बहनों को सीख देना. ताकि वे अपने बेटों और बहुओं के समझ सके .
इसी के लिए भव्य आयोजन किया था. स्लाइड से इस मर्म को समझाया गया था. आवश्यकता बुजुर्गो को ही नहीं बहुओं को भी होती है. यदि औरतें इस मर्म को समझ जाए तो उन सब की जरूरत न हो जिस के लिए सरकार और वहां के बुजुर्ग दम्पति दुखी रहते है. वे चाहते हैं कि उन की अनुभव सुधा पीढ़ी सदा सुखी रहे. इसी के लिए प्रमिला ने शून्य से शुरू कर अपने अथक प्रयासों से यह सब आन्दोलन खड़ा किया था.
यह सब देख कर आगुन्तक महिला ने पूछ लिया, “ आप बहुओं को सुधारने और शिक्षा देने की अपेक्षा सासों को सिखा देने में लगी है. इस का कारण क्या है ?”
“ बच्चे अपने बड़ो से सीखते है. इसलिए हम चाहते हैं कि पहले हम उन के सामने अपनी मिसाल पेश करे ताकि वे हमारा अनुसरण कर के हम से कुछ सिख ले सके.”
“ आप का विचार सही है. मगर बहुएं, अगर सासससुर की सेवा करने लग जाए तो वृधाश्रम की जरूरत है नहीं रहे. दूसरी बात आप यह आश्रम चला रही है फिर यह मुहीम चलने की क्या जरूरत पड़ी कि आप सासों की सिखाने के लिए विभिन्न कर्यक्रम कर रही है.”
“ आप सही सोचती हैं. मगर ताली एक हाथ से नहीं बजती है. यदि सास बहु को बेटी समझ कर अच्छी बातें मान ले तो क्या हर्ज है.” कहते हुए प्रमिला अतीत में पहुच गई जब प्रमिला ने अपनी बहु की बीमारी को उस की कामचोरी मान कर सताना शुरू किया और उस की बीमारी ने उस की जान ले ली और सासबहु के झगड़े से दुखी पुत्र ने उसे अपने घर से निकाल दिया था.
“ काश ! सभी सास अपनी बहुओं की पीड़ा को समझ पाती तो वृधाश्रम की जरूरत है नहीं पड़ती.” कहते हुए प्रमिला की आँखों से आसूं टपक पड़े.
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(मौलिक, प्रकाशित व अप्रसारित)
आदरनीय शशि जी शुक्रिया आप का . अंतिम पंक्ति निर्णय के लिए नहीं डाली थी अपितु प्रमिला के प्राश्चित को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त की है .सादर.
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