आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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कथा पर अपना प्रशंसा सहित अनुमोदन देने के लिए धन्यवाद , आदरणीया कल्पना जी ।
बहुत सुदर व सार्थक लघुकथा. यही तो विरासत मिल रही है| बधाई आप को
विरासत
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“तुम कौन हो भाई? पहले तो नहीं देखा तुम्हें यहाँ..”, अपने शहर की प्रसिद्ध और बहुत पुरानी लस्सी की दुकान पर उस दिन एक नये लड़के को देख कर मैंने सवाल किया.
“मैं छोटे वाले भाई का लड़का हूँ.”, उसने अपने स्मार्ट फ़ोन पर उँगलियाँ फिराते हुए लापरवाही से जबाब दिया.
“अच्छा…”
दो भाइयों में बड़े भाई दुकान में लस्सी बनाया करते थे, छोटे भाई दूध के सामानों को पीछे बने एक अलग कमरे में बनवाते थे, जिसे वो कारखाना कहते. यानी, दुकान की गद्दी सम्हालने के लिए अब एक नयी पीढी तैयार हो गयी है ! देख कर अच्छा लगा.
“भाई, एक लस्सी दे दो.”
स्मार्ट फ़ोन पर अपनी नजरें गड़ाये वो लड़का वहाँ से उठा और पीछे रखे डीप फ़्रीज़र से लस्सी का एक ग्लास निकाल लाया.
“क्यों बेटे, क्या ताज़ा नहीं बनाओगे ? कुल्हड़ में ?”
“यहाँ तो साहब ऐसा ही है. यहाँ सुबह में ही गिलास तैयार हो कर डीप फ़्रीजर में डाल दिये जाते हैं.”, फेंकती हुई नजरों के साथ गिलास मेरे सामने रखते हुए उसने ज़वाब दिया.
लस्सी की घूँट भरते हुये मैं सोच रहा था, “ओह, क्या स्वाद हुआ करता था यहाँ !.. सही है, विरासत को संभाल पाना हर किसी के बस की बात नहीं है.”
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(मौलिक और अप्रकाशित)
आदरणीया कान्ता जी, कथा पर आने के लिये आभार. सादर.
वाह वाह भाई शुभार्न्शु जी, बिलकुल नए अंदाज़ में प्रदत्त विषय को परिभाषित किया हैI हार्दिक बधाई स्वीकार करेंI
आदरणीय योगराज सर. आपका अनुमोदन मिला. आभार.
वाह ,,कुल्हड़ की लस्सी के स्वाद जैसी है ये रचना ...हार्दिक बधाई आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी
आदरणीया प्रतिभाजी, कुल्हड़ की लस्सी का एक अलग अंदाज होता है. जो डिप फ़्रिजर में रखने से खराब हो जाता है. रचना पर विचार देने के लिये आभार.सादर.
आदरणीय शुभ्रांशु भाई जी, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. सच है -" विरासत को संभाल पाना हर किसी के बस की बात नहीं है.” इस बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
आदरणीय मिथिलेश जी, रचना पर अपने विचार देने के लिये आभार.
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