आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
एक अलग अंदाज में लिखी सुन्दर लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय प्रतिभा जी .
हार्दिक आभार आदरणीय
प्रतीकों के प्रयोग से एक बेहतरीन रचना का सृजन हुआ है, बहुत बहुत बधाई आपको
'अपनेपन की दौलत' - (लघुकथा)
बहुत ज़िद करने पर सहपाठी-मित्र के जन्मदिवस पर सुभाष बाबू ने बेटे को पड़ोसी मधुर के घर भेज तो दिया था, लेकिन वे चाहते थे कि दफ़्तर से पत्नी के लौटने से पहले वह वापस बंगले पर आ जाये। अंततः वे बेटे को लेने चले ही गये। मधुर के घर पहुंचने पर उन्होंने देखा कि बेटा बड़े ही मज़े से टाटपट्टी पर पंगत में बैठकर बच्चों के साथ भोजन कर रहा था। मधुर की पत्नी स्वयं खाना परोस रही थी और मित्रगण सहायता कर रहे थे। आने-जाने वालों का सिलसिला जारी था। मधुर किसी से 'अस्सलामालैकुम' कहता, तो किसी से 'जय सिया-राम' और लोग उसी तरह जवाब देते और उस परिवार से घुल-मिल जाते! लेकिन लोग सुभाष बाबू को 'नमस्ते साहब' या 'नमस्कार साहब' कहकर किनारा कर जाते। सुभाष बाबू वातावरण को देखकर चौंक रहे थे। वे मधुर को बहुत निर्धन व सामान्य व्यक्ति समझते थे, लेकिन यहाँ तो सुसंस्कृत माहौल में बढ़िया भोज चल रहा था। आने-जाने वालों और उस पुराने से घर के बाहर खड़े हुए मोटर-वाहनों से उसकी लोकप्रियता और व्यवहार का आकलन किया जा सकता था। बेटा अभी भी अपने मित्र की माँ का परोसा भोजन बड़े चाव से खा रहा था। भोजन सम्पन्न होते ही सुभाष बाबू बेटे को ले जाने लगे, लेकिन बेटा विरोध व्यक्त करते हुए अपने मित्र के घर थोड़ा और समय बिताना चाह रहा था।
"छोड़ जाओ सुभाष बाबू, उसे यहाँ अच्छा लग रहा है!"- मधुर ने मुस्कराते हुए कहा।
"वाकई उसे स्नेह और अपनेपन का माहौल अच्छा लग रहा है यहाँ! तुम इतना सुखी जीवन कैसे जी लेते हो मधुर!"- सुभाष बाबू ने भावुक होकर पूछा!
"मेरे पास वह दौलत नहीं जो आपके पास है; मेरे पास व्यवहार, दोस्ती और प्रेम की दौलत है बस! मेरे पिताजी यही सब मुझे दे गए और सिखा गये थे!"
मधुर के ये शब्द सुनकर सुभाष बाबू के कान में बेटे ने धीमे स्वर में कहा- "दादा जी का घर छोड़ते समय दादा जी ने भी तो ऐसा ही कुछ आप से कहा था न!"
[मौलिक व अप्रकाशित]
व्यवहार, दोस्ती और प्रेम की दौलत--- वाह ! बहुत ही सार्थक कथ्य को उभार मिला है आपकी इस लघुकथा में . लघुकथा पढ़ते हुए पानी की तरह सरलता से मन को छूती हुई निकली है . ह्रदय से बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय शहजाद जी .
आदरनीय शेख उस्मानी जी आप की लघुकथा की पञ्च लाइन ने बहुत कुछ कह दिया. वाकई इस बार आप को लघुकथा बहुत ही बढ़िया हुई है. बधाई स्वीकार करे.
आदरणीय उसमानी जी, सुन्दर कथा. सादर.
भाई उस्मानी जी प्रदत्त विषय को यूँ परिभाषित करना सच में दिल जीत ले गया, आखिर नेक संस्कार के बड़ी दौलत और क्या होगीI वाह वाह !! रचना कथ्य और शिल्प के हिसाब से कसी और सधी हुई होने के कारण प्रभाव छोड़ने में सफल रही हैI लघुकथा में सरलता, सादगी और सूक्ष्मता के इलावा संयमता का हो भी बहुत ध्यान रखना होता हैI क्योंकि यदि लघुकथा में संयम न रखा जाए तो रचना के भटक जाने का खतरा बना रहता है, और अक्सर लेखक अति-कथनी काशिकार हो जाता हैI इस सिलसिले में आपकी रचना की एक पंक्ति प्रस्तुत कर रहा हूँ:
//"मेरे पास वह दौलत नहीं जो आपके पास है; मेरे पास व्यवहार, दोस्ती और प्रेम की दौलत है बस! मेरे पिताजी यही सब मुझे दे गए और सिखा गये थे!"//
कोई भी करीबी दोस्त इस हद तक नहीं जाता कि वह अपने दोस्त को नीचा दिखाएI सामने वाले की कमियों को उजागर करना और अपनी उपलब्धियों की मुनादी करना "संयमता" नहीं हैI न ही दोस्त को कटाक्ष करना ही संयमता हैI. इस पंक्ति को:
// बस! ये सब मेरे पिताजी का दिया हुआ और सिखाया हुआ है!//
कह देने से ही बात बन जाती, जो सन्देश भी दे रही है और संयम से भरी भी हैI
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |