आदरणीय साथिओ,
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गोष्ठी का शुभारम्भ करने और इस बेहतरीन रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आ, वर्तमान राजनीति का यही चेहरा है जिसको आपने आईना दिखाया है|
राजनीति में संवेदनाएँ वाक़ई सरक कर जूते तक पहुँच चुकी हैं। इस बढ़िया प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी।
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉविजय शंकर जी। बेहतरीन प्रस्तुति।
राजनैतिक आडम्बर या फिर यूं कहें कि राजनैतिक चालबाजी का ज़बरदस्त उदाहरण है यह लघुकथाI लघुकथा प्रदत्त विषय के साथ पूर्ण न्याय कर रही है और प्रभावशाली है, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ० डॉ विजय शंकर जीI
'साइड इफेक्ट्स'
"मैं मुश्किल से छुट्टियां लेकर आपके पास यहाँ आ पाता हूँ, कुछ अच्छी तरह वक़्त गुजारना चाहता हूँ, भाषण सुनकर नहीं!" अनुज ने अपने पिताजी से कहा।
"जिसे तुम भाषण कहते हो, वह समझाइश या ताक़ीद है। तुम्हें मालूम है न अपनी संतानों को पत्र लिखकर महान हस्तियाँ भी ऐसा किया करतीं थीं!"
"वे ज़माने गये पापा, परिभाषायें बदल गईं हैं, दुनियादारी बदल गई! कितनी बार कहा कि वैसी बातें करना छोड़िये। फोन करने को मना करता हूँ, तो आप लम्बे पत्र लिखना शुरू कर देते हैं! अच्छा है कि इन्टरनेट , स्मार्ट फोन आपके बस का नहीं, वरना ... !" इस बार अनुज ने कुछ ऊँचे स्वर में कहा।
"बेटे, इस तरह नहीं बोला करते, कुछ मीठा बोलना भी तो सीखो!"
"मिठाई का टेस्ट और ईमानदारी का टेस्ट ज़िन्दगी को मधुमेह या पोलियो ग्रस्त कर देता है, पापा! दोनों में मिलावट का दौर है, दबंगी, झूठ, स्वार्थ और अवसरवादिता से ही अब जीवन सफल हो पाता है!"
"तुम्हारी इसी सोच ने मुझे और मेरे कुटुम्ब को अपमानित कराया है!" पिताजी ने नाराज़ होते हुए कहा और अपने कमरे की ओर जाने लगे।
"ये तो आपकी सोच है! आपको नहीं पता कि मैं सफलता की किस ऊँचाई पर पहुँचा हूँ आप वाले उसूलों को छोड़कर!" अनुज ने पीछे से कहा।
"तुम्हारी यह ख़ुशफ़हमी और क़ामयाबियां सिंथेटिक और एलर्ज़िक उत्पादों की तरह ही हैं, जिनके साइड इफेक्ट्स होते ही हैं!" पिताजी ने अपने कमरे के दरवाज़े बंद करते हुए कहा।
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