आदरणीय साथिओ,
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आ० मनन कुमार जी , बहुत अच्छा प्लाट चुना आपने . मुझे गुलेरी जी की 'उसने कहा था ' कहानी याद आ गयी . यदि संगठन पर थोड़ा और श्रम हो जाता तो यह अवश्य एक आदर्श कथा बनती . सादर
वाह ... तथाकथित अभिजात्य लोगों में तो देश भक्ति का जज़्बा अब एक. 'outdated emotion'.हो गया है..ढेरों बधाई आपको इस सुन्दर कथा के लिए आदरणीय मनन जी
मुहतरम जनाब मनन कुमार साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ----
आदरणीय मनन जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
आदरणीय मनन कुमार जी ! लघुकथा की शुरूआत बहुत ही प्रभावशाली ढंग से हुई थ्ाी पर अंत तक पहुंचते पहुंचते लघुकथा नाटकीयता का शिकार हो गई। सीमा के अंदर घुसने वाले आतंवादियों को कजरी का बारी बारी ढेर करना यथार्थपरक महसूस नहीं होता। परन्तु लघुकथा प्रदत्त विषय को परिभाषित करने में अवश्य सफल रही है । सादर
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