आदरणीय साथिओ,
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तस्वीर का ये दूसरा रुख एक मनोवैज्ञानिक विश्लेष्ण का बेहतरीन नतीजा है जिसने हमसफ़र का साथ छूटने के बाद दो इंसानों में सब सुख सुविधाओं के बीच रहते हुए भी ख़ुशी के उस खाली पन को पकड़ा है| प्राय: ऐसी स्थिति में लोग अपनी गलत सोच के कारण गलत ही सोचते हैं जब की हमेशा वही सच नहीं होता जो हम सोचते हैं |प्रदत्त विषयानुरूप बहुत बेहतरीन लघु कथा आद० वीरेंद्र वीर मेहता जी बहुत बहुत बधाई लीजिये |
जनाब वीरेंदर मेहता साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती, लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
कई दफा अनचाही सुख-सुविधा वह प्रसन्नता नहीं दे पति जोकि मुठ्ठी भर वांछित लम्हे दे जाते हैंI भाई विनय कुमार सिंह जी ने बिलकुल सही कहा है कि भौतिक सुख ही सबकुछ नहीं होताI मुझे सबसे ज्यादा ख़ुशी जेम्स द्वारा बुलवाई गई भाषा से हुई, कोई अनाडी होता तो शायद पूरा संवाद ही अंग्रेजी में बुलवा देताI मगर आपने जिस संतुलित मिश्रित भाषा का उपयोग किया है वह उदाहरणीय हैI प्रदत्त विषय को बखूबी निभाती इस मर्मस्पर्शी लघुकथा हेतु मेरी दिली बधाई स्वीकार करें भाई वीर मेहता जीI
बहुत अच्छी लगी आपकी ये कथा ..हमसे हमारे बड़े सिर्फ थोड़ी सी परवाह चाहते हैं ...हार्दिक बधाई आपको इस बहुत ही भावपूर्ण कथा के लिए आदरणीय वीरेन्द्र वीर जी
भावनात्मक पक्ष को बहुत ही ख़ूबसूरती से बयां किया है आपने आदरणीय वीरेन्द्र वीर मेहता जी। मेरी तरफ से ढेरों बधाई प्रेषित है।
बड़़ी देर कर दी मेहरबां आते आते...। काफी समय से आपकी कथा का इंतज़ार कर रहा था। सब्र का फल मीठा होता है ये आपकी लघुकथा ने दिखा दिया। मैं आपकी कथाओं का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं वीर भाई । जिस सूक्ष्मता से आप चीजों का अवलोकन करतेे हो वह अद्भुत है। लघुकथा में निहित क्षण लघु अवश्य है परंतु इसका महत्व लघु नहीं है, ठीक एटम के अणु जैसे। /सुख-सुविधाओं को ही ख़ुशी का पर्याय मानने वाला/ आपके विचार का पूर्णत समर्थन करता हूं कि भौतिक सुख सुविधाएं ही सारी खुशी नहीं दे सकती। वीर भाई लघुकथा का शीर्षक चयन आप थोड़ी बेपरवाही से करते हो, मेरी तागीद है कि आप इस ओर भी विशेष ध्यान दें । सादर
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