आदरणीय साथिओ,
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आहिस्ता-आहिस्ता , ज़हन, नज़र और अक़्ल की खिड़कियों से पर्दे हटाती हुई लघुकथा रौशनी के लिये रास्ता बनाती है । सुंदर, सुघड़, ताना-बाना, प्रभाव जमाता है । विषय और विवरण मे साहस के दर्शन ।
ओ बी ओ पर बिल्कुल नया हूं, पहली बार आपकी लघुकथा पर कुछ कह रहा हूं । बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें ।
आपकी सराहना से मेरा उत्साहवर्धन हुआ, जिस हेतु दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ मोहतरम मिर्ज़ा हाफ़िज़ बेग जीI
आ.योगराज भाई जी देर से उपस्थिती के लिए क्षमा. साम्प्रादयिकता, और रुग्ण मानसिकता को संम्प्रेषित आपकी लघु कथा पर समीक्षा करना बडा मुश्किल काम है. बस एक बात खटकी पतीली से अजीब सी बदबू आने के बाद पतीली का ढक्कन उठाते हुए आलू का निकलना. आप जो कहना चाहते है उसे समझने मे मै अपने आप को कमतर महसूस कर रही हूँ. कृपया इस पर प्रकाश डाले.
पूर्वाग्रह और कट्टरता से से ग्रसित जो आदमी पतीली में कुछ और देखने की नीयत से आया हो उसको बदबू नहीं आएगी तो और क्या आएगा? वैसे लघुकथा को यदि गौर से पढ़ा होता तो आप ये सवाल नहीं करतीं नयना ताईI
आ. भाई जी ऐसा नही हैं गौर से आपकी लघुकथा को मैने दो तीन बार पढा यहाँ कट्टरता तो ठिक है लेकिन पूर्वाग्रह को नही समझ पाई थी. "पूर्वाग्रह" को केन्द्रित कर फ़िर से लघुकथा को पढा है अब. अब मै उसके तह तक जा पाई हूँ शायद ये मेरा सीमित सोच का दायरा रहा. आभार आपने मेरी बात खुल के बताया भी.
आदरणीय अनुज , आपकी इतनी बेहतरीन लघुकथाएं पढ़ चुका हूँ कि बस यही कहूँगा ऐसी कथा तो आप यूँ ही लिख सकते हैं पर अपना दिल है कि -- ये दिल मांगे मोर . सादर .
बच्चे की जान ही लेंगे क्या?
हार्दिक आभार आ० रश्मि जी.
आपकी इस स्नेहिल टिप्पणी से अभिभूत हूँ भाई वीर मेहता जी, रचना की सराहना हेतु हार्दिक आभारI
‘बम’
“ किसने किया था फोन ?”
पुलिस जीप से उतरती ‘धमाका मैडम ‘ को देख बिल्डिंग के नीचे जमे लोग सतर्क हो गए I ‘बम’, ‘ धमाका’ ‘तूफ़ान’ ,ऐसे ही नामो से मशहूर है इलाके में ये महिला पुलिस अधिकारी I
“जी मैडम ..मैंने “ मिश्रा जी आगे आ गए “मै अभी सुबह पार्क में घूम रहा था , ,झाड़ियों के पीछे दो लोग हाथ में कुछ लिए खड़े थे , फिर झटपट निकल लिए I अँधेरा था, और कुछ ढंग से देख नहीं पाया” I
“तो अंकल आपको लगता है कुछ बम वगेहरा होगा क्यों , चलो देखते हैं “I मिश्रा जी के पीछे खड़े गुप्ता जी को गहरी नज़रों से घूरती ‘धमाका मैडम’ पार्क की तरफ चल दी I
“इसका तो सुना था ट्रांसफर हो गया “ गुप्ता जी के चेहरे पर ‘धमाका’ के लिए खुन्नस साफ़ दिख रही थी I पिछले साल जब गुप्ता जी की बहू ने दहेज़ प्रतारणा का आरोप लगाया था उनपर, तब ‘धमाका मैडम’ ने खूब खिंचाई की थी गुप्ता जी और पत्नी की I
“कैसा पत्थर जैसा मर्दाना चेहरा है इसका , चालीस के आस पास तो होगी ही I शादी शुदा है क्या” ? मिश्रा जी की पत्नी फुसफुसाई I
“कुछ नहीं पता I दो तीन अनाथ बच्चियों को गोद ले रखा है ,घर बार का भी कुछ पता नहीं I सुनते हैं खुद भी अनाथ आश्रम में ही पली बढ़ी है और ...” ’ धमाका मैडम’ की कुंडली बाँचती श्रीमती गुप्ता, मैडम को लौटते देख चुप हो गईI
“अंकल जी “ मिश्रा जी के पास आ गई मैडम “ डाउट तो आपका एकदम सही हैI बम ही है ,ज़िंदा बम “I
“तो नाकाम करने वाली टीम को क्यों नहीं बुलाते जल्दी ?” I हिम्मत लौट आई थी गुप्ता जी की I
“नहीं अंकल जी , अब नहीं होगा नाकाम”
“मतलब “ ? ,
“ मतलब , मै होने ही नहीं दूँगी इसे नाकाम I फटेगा तो सही”I भर्राई आवाज में अपने आप से बोलती ‘धमाका मैडम’ को अब सब अवाक होकर देख रहे थेI
“मैडम बुखार है इसलिए ऐसे पड़ी है I अस्पताल ले चलते हैं ,ठीक हो जायेगी I कपड़ों में लिपटी नवजात को लिए कांस्टेबल पीछे खड़ी थीI
भरी हुई आँखे लिए पिघलता हुआ पथरीला चेहरा धीरे से झुक गया नवजात के ऊपर “चलें बिटिया “ I
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