आदरणीय साथिओ,
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मुहतरम जनाब सुनील साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघुकथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
आ० सुनील जी कालखंड दोष आभासित है . लघु कथा नाटक के एक दृश्य की तरह होती है . निरंतरता बनी रहनी चाहिए . कथनी करनी का अंतर अच्छी तरह उजागर हुआ है . सादर .
आ.सुनील जी कथानक बहुत अच्छा है. वरिष्ठ जनो से सब कुछ कह दिया है. आप एक सधे रचनाकार है. बधाई आपको
कालखंड दोष से मुक्त होने के बाद रचना में जान आ जायेगी आदरणीय भाई सुनील जी, आपकी रचना से मुझे कलाम साहब की वो इमेल याद आ गयी, जो उन्होंने देश में कई लोगों को पोस्ट की थी| जिसमें उन्होंने कहा था कि फ़र्ज़ करें आप सिंगापूर एअरपोर्ट पर हैं, आप केला खरीदते हैं और खाने के बाद इधर-उधर देखते हैं, एक डस्टबिन ढूंढ उसमें छिलका डाल देते हैं| लेकिन, अपने देश में तो आप ऐसा नहीं करते| इस सन्देश परक रचना के सृजन हेतु हार्दिक बधाई और तुरंत और अच्छी कर लें, इसके लिए शुभकामनाएं|
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