आदरणीय साथिओ,
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रचना की अंतिम पंक्ति बहुत ही तीक्ष्ण है //अब लड़कियाँ भी कहा लड़कों से कम है।// असली नारीवादी कभी भी स्त्री के स्त्रीसुलभ गुणों को नष्ट करने का पक्षधर नहीं हो सकता| ममता, हृदय की कोमलता, सहनशीलता आदि नारी में कितने ही गुण हैं, जो स्त्री को पुरुष से विशिष्ट दर्जा देने के लिए पर्याप्त हैं| स्त्री कभी भी पुरुष से कमतर रही ही नहीं, लेकिन कई जगहों पर अत्याचारों ने जाने कैसे प्रधानता के अहंकार को जगा दिया, जो कि आधारहीन था| इस बात का लाभ उठाकर कुछ लोगों ने स्त्री को स्त्री सुलभ गुणों से इतर कर पुरुष के गुणों की तरफ बढ़ाने का प्रयास किया| यह अच्छा है कि स्त्री इतनी सक्षम भी हुई जो पुरुष के गुणों से भी स्वयं को समृद्ध कर दिया, लेकिन कहीं-कहीं अवगुणों को भी अपना लिया, मैनें भी इस विषय पर दो लेख लिखे हैं और मुझे लगता है इस तरह की रचनाओं की समाज में अब बहुत आवश्यकता है| सादर बधाई आपको आदरणीया नयना जी, इस सृजन हेतु|
आ. चन्द्रेश जी रचना के मर्म तक जाकर इतनी सुंदर और विस्तृत टिप्पणी के लिए आभार आपका.
आदरणीया नयना जी, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. हार्दिक बधाई. सादर
आभार सर , आपको रचना पसंद आई
करोडपति बनने का स्वप्न
यार कैलाश, मै रोज सोचता था कि मै सुबह से शाम तक दूकान में कुछ नहीं कमा पाता और रमेश को सेठ ने अहमदाबाद में गद्दी सम्भला उसे वहां साझेदार बना लिया | उसकी माँ भी उसकी बड़ाई करते नहीं थकती थी | अब राज खुला कि सेठ का हवाला का कारोबार है और अहमदाबाद में चांदी के व्यापार की गद्दी तो नाम की थी | बाजार से लोगो से पैसे उधार लेते रहे और लोग अच्छे ब्याज के लालच में देते रहे, क्योकि वह ब्याज सबको हर माह निमित रूप से दे रहा था | अब लोग घर पर इक्कठे होकर अपना पैसा मांग रहे है और रमेश कहाँ गायब हो गया पता ही नहीं |
कैलाश बोला - देखो मुझे तो पहले भी उसका काम समझ नहीं आ रहा था | व्यापारियों से पैसे उधार लेकर अपनी माँ के पास ही रखवाता था तो माँ को पूछना चाहिए था ये इतनी बड़ी रकम आये दिन कैसे और कहाँ से कमा कर ला रहा है | अब एक सप्ताह गायब रहने के बाद अपने शरीर पर चाक़ू के घाव दिखाकर आत्म-ह्त्या का नाटक रच रात को अचानक प्रकट हो गया | उचित ध्यान न देकर माँ-बाँप ही लालच में अपने बेटे को गलत रास्ते जाने से नहीं रोकते तभी वह गलत संगत में पड़ता है | एक कहावत है कि “चोर को नहीं चोर की माँ को पकड़ो” | कोई भी व्यक्ति रातो रात करोडपति बनने के सपने देखे, पर सीधे तरीके से बन नहीं सकता | उन्नति को कोई शोर्ट कट नहीं होता |
(मौलिक व अप्रकाशित)
हार्दिक आभार भाई ओमप्रकाश क्षत्रीय जी
प्रयास अच्छा है आ० लड़ीवाला जी, लेकिन वर्तमान स्वरूप में यह रचना किसी लघुकथा के कथानक का एक ख़ाका भर ही बन पाई हैI आपकी लघुकथा में भी छंदों जैसी प्रवीणता देखने को मिले तो आनंद आ जाएI सहभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करेंI
छन्दों में प्रवीणता का प्र्माप०पत्र भी आप विद्व्जों के सानिध्य की ही देन है | लघुकथा की ओर प्रयास करता हूँ आपका उत्साहवर्धन और दिशा बोध मिलता रहा तो सफलता मिल ही जयेगी | आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय
//एक कहावत है कि “चोर को नहीं चोर की माँ को पकड़ो” | कोई भी व्यक्ति रातो रात करोडपति बनने के सपने देखे, पर सीधे तरीके से बन नहीं सकता//...एकदम सही कहा आपने ..प्राथमिक संस्कार ही जीवन की नींव होते है ...बधाई आपको इस रचना के लिए आदरणीय ...सादर
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