आदरणीय साथिओ,
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प्रदत्त विषय पर गूढ़ अर्थों को समेटे लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीय, थोड़े संपादन की जरुरत है तो और निखर जाएगी
आ० विजय सर ! कभी कभी बौद्धिकता रचना पर हावी हो जाती है . कालेज टूर तक कथा सही है पर ढहते किले का दर्द बयां नहीं होता
मुह्तरम जनाब विजय साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुंदर लघु कथा हुई है जिस
के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ---
एतिहासिक किले के इर्द गिर्द बनी सुन्दर लघु कथा हुई आद० डॉ० विजय शंकर जी बस थोड़ी लम्बी ज्यादा महसूस हो रही है किन्तु रोचकता लिए हुए है बहुत बहुत बधाई .
मशीन * (ढहते किले का दर्द )
" सुनिए ! अंदर आ जाइये बाहर बहुत मच्छर हो गए हैं।" पत्नी ने आवाज़ लगाई।
कोने पर बने उस घर के दोनों ओर की सड़क से गाड़ियाँ फर्राटे से गुजर रही हैं लगा पति ने सुना नहीं वे निर्विकार भाव से बैठे रहे। महाभारत के अर्जुन की तरह उनकी आँखें घर के गेट की तरफ लगी हैं। बाकि हर चीज़ से अनजान।
कुछ समय बाद पत्नी ने बाहर झाँका और फिर बोली- " देखिये अँधेरा होने लगा है, अब तो अंदर आइये।"
" सुनो ! दीपक क्यों नहीं आया होगा? चार दिन से उसकी राह देख रहा हूँ।" चश्मे को रुमाल से साफ़ करते हुए बोले।
" अब मुझे क्या पता… " , बात टालने के लिए पत्नी ने कहा। और फिर पति को उठने में सहारा देते हुए बुदबुदाई, " अब आप तो उसके अच्छे के लिए ही पढ़ा रहे थे। ये आजकल के बच्चे भी मुफ़्त मिली चीज़ की कद्र ही नहीं करते।"
" जानती हो, पढ़ाना तो एक बहाना था, गणित मेरा विषय नहीं रहा, फिर भी तैयारी करके उसे समझा रहा था। "
" हाँ, जानती हूँ। "
" उसके आने से अकेलापन कम लगता था। वर्ना घर की ख़ामोशी काट खाने को दौड़ती है।" पत्नी के कन्धे का सहारा लेकर चलते हुए बोले।
पत्नी से रहा नहीं गया, बोली,’’ दीपक की माँ से मेरी बात हुई थी। वह कहता है कि... " पत्नी कहते-कहते जैसे रुक गई।
"….क्या कहता है? " पति के कदम भी ठिठक गए।
" कहता है कि अंकल को ठीक से सुनाई नहीं देता, मैं पूछता कुछ और हूँ वे बताते कुछ और हैं। मेरी समझ में कुछ आता ही नहीं।.... और वह क्या मैं भी तो कह-कहकर थक गई हूँ कि आप...’’
तभी गेट की घण्टी बजी दोनों ने मुड़कर देखा नौ-दस साल एक का बच्चा अपनी माँ के साथ खड़ा था। माँ बोली, ‘’सुना है आप यहाँ गरीब बच्चों को पढ़ाते है?"
‘’हाँ, पढ़ाते हैं।‘’ जवाब पत्नी ने दिया।
पति के चेहरे पर बालसुलभ मुस्कान उभर आई। पत्नी को देखते हुए बोले, "सुनो, कान की मशीन बनवाने चलेंगे कल।"
जानकी बिष्ट वाही
मौलिक एवम् अप्रकाशित
नॉएडा -उत्तर प्रदेश
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