आदरणीय साथिओ,
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मुह्तरम जनाब मनन कुमार साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुंदर लघु कथा के
लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ---
समसामयिक लघु कथा लिखी है आपने आद० मनन जी पढ़ते वक़्त जो बात मेरे भी दिमाग में आ रही थी वो युक्ति मिथिलेश भैय्या ने बता भी दी थोड़े से संशोधन से बेहतरीन लघु कथा बन जायेगी आपको दिल से बधाई .
‘कबाड़’
लहरें उछल-उछल कर उसे जगा रही थी न जाने क्या बात थी आज वो अब तक जगा नहीं था कहीं लम्बे सफर से पहले का विश्राम तो नहीं है अच्छा है लंबा सानिध्य प्राप्त होगा सोचकर और उमंगित उन्मादित होकर उसको रिझाने लगी मछलियाँ भी नीचे से गुदगुदी करने में लगी हुई थीं धीरे-धीरे अरुणाई की लाली में नहाई छोटी-छोटी बोट भी इकठ्ठा होने लगी देखते ही देखते सब उसके आस-पास आ गई|
पास ही बन्दरगाह पर हूटर की आवाज सुनकर वो जगा. ये क्या उसकी आँखें सूजी हुई थी वो रात भर सोया नहीं था उसकी जिन्दगी भर की देश भक्ति की ऐसी सजा?? उसे पता था महज दौलत की खातिर उसको बेचने की कवायद चल रही थी|
.सब किश्तियों का ध्यान अचानक उसके मुँह पर गया जहाँ र बड़ी सी तख्ती चस्पा कर दी गई थी जिसपर लिखा था विक्रांत सोल्ड टू आई बी कमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड (‘Vikrant’ Sold to I.B commercial private limited) .
मैडल की जगह एक कबाड़ का तमगा चिपक गया था उसकी छाती पर अब उसे डॉकयार्ड में ले जाकर एक कबाड़ी को सौंप देंगे सोचकर वो फफक-फफक कर रोने लगा| क्या कोई है जो यहाँ उसके दर्द को समझे उसकी आत्मा चीत्कार कर रही थी |
तभी उसे नौ सेनिकों,अधिकारियों की भीड़ को चीरता हुआ व्हील चेयर पर आता जाना पहचाना एक चेहरा नजर आया |अरे ये तो मेरा पूर्व कप्तान अरुण कपूर है मेरी तरह कितना उम्रदराज हो गया है दोनों की आँखें जैसे ही मिली मानों दर्द का एक सैलाब उमड़ आया हो | कैप्टन के साथ एक वकील हाथ में कुछ पेपर लेकर अधिकारिओं को समझा रहा था थोड़ी देर में अनाउन्समेंट हुआ-
“डील केंसिल’...
केप्टन ‘विक्रांत’ को सलामी दे रहा था लहरें भी ख़ुशी में उछल-उछल कर विक्रांत के आँसुओं को धुलने में लगी हुई थीं |
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