आदरणीय साथिओ,
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चक्रव्यूह (लघु कथा )
जिस माँ ने जन्म दिया उसकी उसे याद तक न थी . जिस दम्पति ने गोद लिया उसका लंबा साथ न मिला . जब उसे गोद लिया गया वह पांच वर्ष का था . दैवयोग से जिस माँ ने गोद लिया पांच वर्ष बाद उसकी गोद हरी हो गयी . उसने एक बेटी को जन्म दिया . नाम रखा- सांत्वना जब सांत्वना पांच वर्ष की हुयी दंपत्ति एक दुर्घटना में मारे गए. उसने सांत्वना को मेहनत से पाल पोस कर बड़ा किया .अब सांत्वना बीस की है और वह तीस का . सांत्वना ने इंटर पास कर लिया है और अब वह महसूस करता है कि बड़ी होकर वह थोडा आत्मकेंद्रित हो गयी है और कभी-कभी वह उसे संदेह से देखती है . जब से उसने राखी बंधवाने से मना किया वह और सतर्क हो गयी है . यह सच है कि सांत्वना के नैन-नक्श उसे भाते हैं , पर भाई –बहन हैं वो , हालाँकि दोनों जानते है कि वे असल भाई-बहन नहीं हैं . उसे सांत्वना से नहीं अपने से भय लगता है . इतने पैसे भी नहीं कि सांत्वना के हाथ पीले कर उससे पीछा छुडा ले.
कैसे चक्रव्यूह में फंस गया है वह .
एक दिन किचन का काम समाप्त करते हुए सांत्वना ने कहा –‘ दद्दा मेरी बात मानो , अब तुम शादी कर लो .’
‘क्यों ------?’- वह चौंक उठा –‘अचानक तुम्हे यह क्या सूझी ? दो का पेट तो मुश्किल से भर पा रहा हूँ . तीसरी आफत और मोल ले लूं ?’
‘नहीं, मैं ऐसा इसलिए कह रही हूँ कि इससे मुझको लेकर जो तुम्हारी चिंता है वह ख़त्म हो जायेगी ?’
‘क्या मतलब . मेरी चिंता – क्या बकवास है यह ?’- वह बौखला गया . इस वाक्य के कितने गहरे अर्थ थे . वह सकते में आ गया .
‘भाभी आ जायेगी तो मेरा भी अकेलापन दूर होगा और तुम्हारा भी .’
उसे इस वाक्य में भी गुणीभूत-व्यंग्य नजर आया . वह सहसा गंभीर हो गया .
‘सांत्वना , सच तो यह है कि हम दोनों आपस में सगे भाई –बहन नहीं हैं पर सामाजिक दृष्टि से सगे न सही पर भाई बहन तो हैं ही . स्त्री-पुरुष के बीच उम्र का अपना एक आकर्षण होता है . अक्सर लोग इन बहावों में बहते हैं .पर आज तूने अपना पक्ष रख दिया है तो पैर मैं भी पीछे नहीं हटाऊगा . बहन, तेरी शादी पहले होगी, चाहे जैसे हो ----. अभी तू मेरी जिम्मेदारी है .’
सांत्वना का सारा बोझ मानो उतर गया. उसे लगा वह चक्रव्यूह भेदकर बाहर आ गया है .
(मॉलिक एवं अप्रकाशित)
aआदरणीय , आपका आभार .
आदरणीय श्रीवास्तव जी, लघुकथा अपने शीर्षक 'चक्रव्यूह' से न्याय करती प्रतीत नहीं हो रही। कथा में कहीं इसका संकेत नहीं मिलता कि 'उसने' किसी प्रकार का चक्रव्यूह रचा हो । ये अवश्य है कि सहज मानवीय प्रकृति के तहत विपरित लिंग आकषर्ण है जो काफी हद तक स्वभाविक है । सादर
आ० रवि जी , आपका अपना नजरिया है . पात्र ने कोइ चक्रव्यूह नही रचा , वह तो अपने मनोसंघर्ष के चक्रव्यूह में स्वयं फंसा हुआ है . यह कोई यौद्धिक व्यूह रचना नहीं है , यह तो उलझाव का प्रतीक मात्र है . आप रचना पर आये . आपका स्वागत और धन्यवाद .
एक जटिल विषय लेकर चली है आपकी कहानी , एक ही दंपत्ति द्वारा अलग अलग अनजान परिवारों के गोद लिए बच्चे और माँ बाप के निधन के बाद उनका आपसी रिश्ता बधाई इस जटिल विषय को कुशलता से निभाने के लिए ..आदरणीय ...सादर
आ० प्रतिभा जी आभार.
आदरणीय गोपाल भाई जी,
सचमुच युवावस्था में ऐसी परिस्थिति से कुशलता पूर्वक निपट पाना एक चक्रव्यूह से बाहर आने जैसा है। हृदय से बधाई इस लघु कथा पर
आ० अखिलेश जी बहुत बहुत शुक्रिया .
अच्छी लघुकथा हुई है, लेकिन पहले पैरे में विवरण ज़रूरत से ज्यादा हो गया, जिस कारण कथा की गति बाधित हुई हैI बहरहाल बधाई स्वीकार करें आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जीI
आ० अनुज आपका आभार .
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