आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय सुनील वर्माजी , आप ने लघुकथा अलग अंदाज में नई मनोदशा को ध्यान में रख कर लिखी है. आप का हार्दिक अभिनंदन व बधाई.
आ.सुनिल जी बहूत सार्थक रचना हुई है आपकी. आपकी रचना पर उपस्थिती दर्ज करते करते तक अनेक टिप्पणीयाँ आ चुकी है फिर भी जिस सौम्यता से पत्नी ने दहला मारा है वो काबिले तारिफ़ है.
आ० सुनील जी , अच्छी रचना प्रस्तुत की आपने . आपको बधाई .
कथनी-करनी में अंतर का विषय यूं तो बहुत पुराना है, लेकिन यह आपकी विशेषता है कि इस पुराने विषय को भी सामयिक घटना के साथ जोड़ते हुए नये अंदाज़ में कहकर बढ़िया पंच लाइन के साथ उत्तम सृजन कर दिया| हार्दिक बधाई स्वीकार करें सुनील जी भाई| //अपेक्षित सुकून न मिलने पर वह उकताकर सिरदर्द की शिकायत के साथ बिस्तर से उठा| कॉफी का कप लेकर// यहाँ मुझे रचना का प्रवाह थोड़ा बाधित सा लग रहा है| मेरा अनुसार सिरदर्द की शिकायत की बजाय दर्द के कारण सिर मलते हुए कहा जा सकता है और कॉफ़ी का कप उसकी पत्नी द्वारा उसके हाथ में पकड़ाया जा सकता है| अजान की बजाय धार्मिक स्थल से आती आवाज़ कहने का आदरणीय रवि प्रभाकर जी सर का सुझाव मुझे भी बहुत बढ़िया लगा|
आ. सुनील जी , आपकी कहानियाँ तो अक्शर पढ़ते ही हैं। आपको लिखने का हक़ है। आपने लघुकथा के माध्यम से एक बेहतरीन सन्देश दिया है। जो सकारात्मक सोच को तो दर्शाता ही है। साथ ही समस्या का हल भी बताता है। आपको बहुत बहुत बधाई।
उसकी पत्नी का भी समर्पण जाहिर होता है कि पति के खर्राटों की दवा लिए बिना सोजाने पर उसने चुपचाप कानों में रूई लगा ली। वहीं घर के बाहर के ध्वनि प्रदूषण पर भी कटाक्ष करती उत्तम लघुकथा की रचना।
कथा को पढ़ते ही वाह बरबस ही मुंह से निकल गया , वाह वाह । बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय सुनील वर्मा जी ।
[1]
‘ताल नैनीताल’
रसोई में आटा गूंधते सविता के हाथ , टी वी में आते गाने को सुन ठिठक गए I
“ आवाज तेज कर दीजिये ,हम सुन रहे हैं यहीं से I”
“हम आवाज देते हैं तो कहती हो काम में सुन नहीं पाई I” पति ने तंज करते हुए आवाज तेज कर दी I
सातवीं या आठवीं में रही होगी सविता ,जब उसने कटी पतंग पिक्चर देखी थी I नैनीताल ताल में नाव में गाना गाते नायक नायिका बस गए थे कच्चे मन में, और साथ में बस गया था शादी के बाद पति के साथ नैनीताल जाने का सपना भी I
शादी के बाद तीन चार साल तक तो वो पति को अपने सपने की याद दिलाती रही थी I फिर धीरे धीरे सास ससुर की बीमारियाँ ,बच्चों की पढाई और शादी ब्याह निबाहते ,कब सपना पीछे छूट गया पता ही नहीं पड़ा I पर ये गाना सुनते ही कहीं नीचे दबा ताल नैनीताल ,आज भी ऊपर आ जाता था I
“आवाज बहुत तेज हो रही है पापा I” बाहर से अन्दर घुसते ही बेटे ने रिमोट हाथ में ले लिया I
“कम मत करना , ख़ास गाना है तेरी माँ का I सुन रही है अन्दर से I”
“ओ होss अच्छा I पापा सोच रहा हूँ इस बार रश्मि को कहीं हिल स्टेशन घुमा लाऊँ I शादी के बाद भी जा नहीं पाए थे I”
“ बिलकुल जाओ I दोनों कमाते हो, दौड़ भाग करते हो , कभी कभी छुट्टी तो बनती है I”
“ आप भी इस साल रिटायर हो रहे हैं I आप दोनों के लिए भी मुख्य मंत्री तीर्थ यात्रा योजना का फॉर्म भर दूँ? “
“ वो क्या है भई?”
“ आपके हम उम्र लोग ही होंगे ट्रेन में I सारे तीर्थ घुमाएगी , खाना पीना सब उनका I साथ में डॉक्टर भी होता है और .I.”
“ कहीं नहीं जाना मुझे तीर्थ वीर्थ यात्रा I “ सविता के यूँ अचानक पास आ खड़े होने से बेटा अचकचा गया I “ अब तो बेटा, सीधे मटके में भरकर ही ले जाना हरिद्वार I”
तेजी से रसोई में लौट आई सविता I आँखों की बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी I उस बारिश से मन में सहेजे ताल नैनीताल में ऐसी बाढ़ आई कि नायक नायिका की कश्ती डूब कर कहीं गुम गई I
“ बिलकुल पागल हो तुम “ पीछे आ खड़े पति ने मजबूती से उसके कन्धों को पकड़ उसका चेहरा अपनी तरफ कर लिया I “ मुझ पर भरोसा नहीं रहा कि तुम्हारी इच्छा पूरी कर पाऊँगा ?”
उसे याद नहीं आ रहा था कि पति की बाहों में इतनी उष्णता ,उसने आज से पहले कब महसूस की थी I बाढ़ थम गई थी I नायक नायिका की कश्ती हौले हौले फिर तैरने लगी थी ताल नैनीताल के ऊपर I
मौलिक व् अप्रकाशित
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[2]
‘अनुत्तरित प्रश्न ‘
कमरे की दीवारों पर हर तरफ तस्वीरें थीं I ज़्यादातर तस्वीरें ,जस्सी के बाउजी और दादाजी की फौजी वर्दी में उनके फ़ौज की नौकरी के समय की थीं I एक तस्वीर में ,दादा बेटा और पोता , तीनों वर्दी में में खड़े मुस्कुरा रहे थे I डबडबाई आँखों से वो तस्वीर में खड़े जस्सी पर हाथ फेरने लगा I
“बहुत प्यार था ना तुम दोनों में ?” जस्सी के बाउजी पीछे खड़े थे I
“ जी ..जी..बाउजी I” उसका मन हुआ बाउजी के गले लग कर रो ले , पर खुद को संभाल लिया उसने I
“ जस्सी भी जब छुट्टियों में आता था, बस तेरी ही बातें किया करता था I कहता था तुझे हम सब से मिलवाने घर लाएगा I भाग्य का खेल देख , तू उसे घर लेकर आया वो भी डब्बे में सुलाकर I” फफक उठे वो I
“ आप टूट गए तो दादाजी को कौन संभालेगा ?”
“ तुझसे एक विनती है बेटा” बाउजी ने उसका हाथ पकड़ लिया I
‘हाँ बाउजी ?”
‘दादाजी को ये मत बताना कि..कि., तू .तू समझ रहा है ना ? मत बताना कि जस्सी पत्थरबाजों के पत्थरों से घायल होकर मरा है , नहीं तो.. I” बच्चों की तरह बिलख रहे थे वो I
“ नहीं ,बिलकुल नहीं I” उसे याद आ रहा था ,अस्पताल ले जाते हुए घायल जस्सी की आँखों में भी ये ही विनती थी I
“ नब्बे साल का बूढा मेरा फौजी बाप ,ये ही समझ रहा है कि उसका पोता दुश्मन से लड़ते हुए शहीद हुआ है I पोते की याद में वो रो तो रहा है ,पर आँखों में गर्व भी है I उसे पता पड़ गया तो ..तो बता क्या कहूँगा मै उससे ?”
बिलखते बाउजी से होती हुई उसकी नज़र दीवार पर लगे जस्सी की आँखों से मिल गई I वो भी कह रहा था “संभाल लेना यार I”
मौलिक व् अप्रकाशित
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