आदरणीय साथिओ,
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रचना पसंद फरमाने के लिए हार्दिक आभार आ० तस्दीक अहमद खान साहिबI
रजत जयंती आयोजन आपकी कथा से शुभारंभ हुआ है आदरणीय सर | आपको हार्दिक बधाई | बेहद उम्दा विषय चुना है आपने इस कथा में | स्त्री के खुले विचारो से पुरुष यह सोच लेता है कि वह सब कुछ सह जाएगी ऐसा तो नहीं है | आपकी कथा का विषय और आपकी प्रभावित लेखन शैली के लिए पुनः आपको हार्दिक बधाई आदरणीय |
रचना के मर्म को समझने और इस उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार आ० कल्पना भट्ट जीI
स्त्री के व्यवहार से उसके चरित्र का आंकलन , एक विचरोत्तोजक मुद्दे को कथा का विषय बनाने के लिए आपको धन्यवाद कथा सहज प्रवाह में अपने कथ्य को अंजाम दे रही है हार्दिक बधाई आपको इस कथा के लिए और आयोजन की पच्चीसवीं वर्षगाँठ के लिए भी आदरणीय योगराज जी , ये आयोजन अपने आप में अनूढ़ा होता है
बहुत बहुत शुक्रिया आ० प्रतिभा पांडे जी, आपकी इस स्नेहिल टिप्पणी से मेरा हौसला दोबाला हुआ.
लघुकथा में शीर्षक क्या भूमिका निभाता है प्रस्तुत लघुकथा उसका लाजवाब उदाहरण है। /"दरअसल, आपके खुले स्वभाव से मुझे लगा था कि शायद आप भी मेरी बीवी जैसी ही हैंI/ शीर्षक से पूर्णरूपेण न्याय करती जिज्ञासा पंक्ित कथा को और ही ऊँचाइयों पर ले गई। लेखकीय कला कौशल का एक शानदार नमूना । मुझे निजी तौर इस इस लघुकथा की विशेषता लगी कनिका का परिस्िथतयों से समझौता ना करना अन्यथा अक्सर यौन शोषणनुमा लघुकथाएं पढ़ने को मिलती हैं जो पूर्व में यथेष्ट मात्रा में लिखी गई है। कनिका का जुझारूपन एक पथ प्रर्दशक के तौर पर समाज की अगवाई करने में सक्षम है ऐसी सार्थक रचनाओं की वर्तमान में बहुत आवश्यकता है। हार्दिक शुभकामनाएं निवेदित हैं ।
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी।कुछ छुपे रुस्तम लोगों की घृणित मानसिकता और गंदी सोच को बड़े शानदार अंदाज़ में उजागर करती बेहतरीन लघुकथा।गोष्ठी का शुभारंभ करने हेतु पुनः हार्दिक बधाई।
आपने मेरी कथा के असली उद्देश्य को समझकर जो वैदूष्य्पूर्ण टिप्पणी दी, उसके लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ डॉ रवि प्रभाकर जी.
हार्दिक आभार आ० तेजवीर सिंह जी.
बहुत ही खूब ! सावन के अंधे को हरा ही तो सूझना था। कोढ़ में खाज यह कि सत्यार्थी जी को पूरी उम्मीद थी कि गुरु माँ गुड़ है तो चेली तो चीनी होगी ही होगी। क्योंकि जैसी नकटी देवी, वैसे ही ऊत पुजारी। सही आइना दिखाया शेरनी कवयित्री ने। हम सब सत्यार्थी भी अब इस सत्य का अर्थ समझ जाएंगे कि सभी धान बाईस के पंसेरी नहीं होते।
"ऊत पुजारी" - हाहाहाहा !! सही फरमाया आ० प्रदीप नील जी, हार्दिक आभार!
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