आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय भरदान संपादक महोदय जी, किस सरलता से प्रदत्त विषय से न्याय किया है वाह ! लघुकथा की सूक्ष्मता भी प्रभावित करती है । / गुमटी के पीछे बैठे वे दोनों साथी बहुत उदास दिख रहे थेI/ गुमटी के पीछे बैठना उन लोगों के मन में चोर होने के भाव को मुखरता से प्रदर्शित करता क्योंकि ताउम्र वे समाजविरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहे इस लिए मुख्य धारा से जुड़ने (गुमटी के सामने बैठ) में उन्हें जो संकोच हो रहा उसे इस पंक्ित से बाखूबी उभारा गया है । / उनकी चाय ठण्डी हो रही थी और हाथ में पकड़ी बीड़ियाँ भी बुझने को थींI/ व / बुझती हुई बीड़ी का अंतिम कश खींचते हुए/ आदि छोटे छोटे पर अत्यंत सूक्ष्म अवलोकन लघुकथा में 'दृश्य चित्रण' को सजीव बना रहा है । लघुकथा का अंत / सड़क की दूसरी तरफ बने कारख़ाने और स्कूल की तरफ इशारा करते हुए चाचा ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया:
“वो रहे तुम्हारे असली दुश्मनI”/ अत्यंत विचारोत्तेजक अंत है। ऐसी रचनाएं 'प्रकाश स्तंभ' हैं जो देश व समाज को नई दिशा देने में समर्थ है। इस सार्थक व विचारोत्तेजक लघुकथा के लिए हार्दिक शुभकामनाए निवेदित हैं । सादर
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इतनी विस्तृत समीक्षा हेतु बेहद शुक्रिया डॉ रवि जी.
हम जैसे लघु कथा के प्रयासियों को दिशा दिखता एक और मील का पत्थर ...हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर जी
हार्दिक आभार आ० प्रतिभा पांडे जी. मैं भी आप ही की तरह लघुकथा विधा का एक विद्यार्थी ही हूँ, आपके अनुमोदन ने मेरा उत्साह बढाया है.
निर्णय शर्मा जी के बेटी ने सब की तरह दसवीं कक्षा पास करने के बाद साइंस विषय लिया . क्लास ट्वेल्थ में बड़ी मुश्किल से पास हो पाई . हर कोई अपने बच्चों को डॉक्टर -इंजीनियर बनाने के होड़ में शामिल था . लाखों रूपये खर्च कर कोटा में कोचिंग इंस्टिट्यूट में भर्ती करा रहे थे . शर्मा जी व श्रीमती शर्मा ने बेटी गरिमा से बात की और जानना चाहा कि वो क्या करना चाहती है और उसकी रूचि किस में है . शर्मा परिवार इस बात से अवगत था कि अभिभावक अपनी हसरतों को बच्चों पर थोपते हैं जिससे कई बच्चे बर्बाद हो गए और कई तो आत्महत्या के दुखद कदम तक उठा लेते हैं. गरिमा ने कहा वो आर्ट्स में ग्रेजुएशन करना चाहती है . शर्मा परिवार ने सहर्ष उसकी बात मान ली तथा उसके पसंदीदा कॉलेज पर एडमिशन करा दिया. गरिमा को पढाई में काफी आनंद आने लगा. गरिमा ने ग्रेजुएशन गोल्ड मैडल के साथ किया . सारा परिवार ख़ुशी में झूम उठा . आज परिवार को अपने सही निर्णय पर गर्व है. मौलिक व अप्रकाशित.
यह रचना अभी एक कथानक मात्र है, इस पर मेहनत की जाये तो अच्छी लघुकथा निकल कर सामने आ सकती है. बहरहाल, आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक अभिनंदन स्वीकार करें. अभ्यासरत एवं प्रयासरत रहें तथा लघुकथा से सम्बंधित मंच पर उपलब्ध जानकारी का अध्ययन अवश्य करें भाई श्याम मठपाल जी.
अपनी रचना के माध्यम से आपने बढ़िया सन्देश देने की कोशिश की है आदरणीय श्याम जी. इस हेतु मेरी तरफ से हार्दिक बधाई प्रेषित है. किन्तु आपकी इस प्रस्तुति में कथातत्त्व की कमी है. 'क्या' कहा जाना है यह तो महत्त्वपूर्ण है ही 'कैसे' कहा जाना है यह भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है. इस सन्दर्भ में ओबीओ पर उपलब्ध लघुकथा सम्बन्धी आदरणीय योगराज सर के लेखों का अध्ययन कीजिए. ढेरों शुभकामनाएँ. सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय श्याम मठपाल जी।गोष्ठी में सहभागिता हेतु ।
सबक
हिंदी टीचर
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सुबह से ही कक्षा में आज सुरभि बड़े उत्साह से क्लास ले रही थी।तनख्वाह का दिन था ।अपनी पहली नॉकरी की पहली तनख्वाह मिलने का उत्साह वो समेट नहीं पा रही थी ।
" मैडम प्रिंसिपल ने आपको बुलाया है।"
चपरासी ने आकर जैसे ही खबर दी सुरभि मानो उड़ते बादल की तरह ऑफिस में पहुंची ।
"ये लीजिये आपका चेक ।यहां साइन कर दीजिए।
"सर ,ये तो दस हज़ार हैं!साइन आप पूरे स्केल पर करने को कह रहे हैं "!
"तो ,जो मिल रहा है,रख लो।हिंदी टीचर हो, इतना काफी है "!
"सर,बाकी टीचर को तो पूरा स्केल मिला है ।"
"वो साइंस ,इंग्लिश ,मैथ्स के टीचर हैं ।हिंदी तो हम सिर्फ दिखावे के लिए पढ़ाते हैं।हमारे हाई फाई पब्लिक स्कूल में लोग अपने बच्चों को हाई फाई इंग्लिश सीखने भेजते हैं ।हिंदी कौन सिखाना चाहता है अपने बच्चों को"!
"जी सर,एक रिक्वेस्ट है -ये मेरी पहली तनख्वाह है ।मैं चाहती हूं कि आप मुझे सारे स्टॉफ के सामने चेक दें।"
"चलिए स्टॉफ रूम में, आपकी ये इच्छा पूरी कर देते हैं "।
स्टॉफ रूम में --"लीजिये सुरभि जी अपनी पहली तनख्वाह का चेक "।
सुरभि चेक लेकर फाड़ कर प्रिंसिपल की ओर फेंकती है।सारा स्टॉफ अचंभित सा खड़ा हो जाता है ।
"ये क्या बदतमीजी है ।निकल जाओ मेरे स्कूल से"।
"जा रही हूं।कल हिंदी संस्थान की जिस गोष्ठी में आपको हिंदी प्रेम और हिंदी उन्नति पर भाषण देना है ,वहां मिलेंगे।"
सुरभि कहते हुए दरवाज़े तक पहुंची फिर पीछे मुड़ी --"आपकी हिंदीऔर हिंदी शिक्षक पर की गयीं महान टिप्पणियों को इस मोबाइल में रिकॉर्ड कर लिया है।कल की गोष्ठी यादगार होगी आइयेगा ज़रूर ।न भी आये तो भी मोबाइल तो बजेगा ही ...."!
सुरभि जा चुकी थी ।प्रिंसिपल ए सी में भी पसीने से लथपथ खड़ा था ।
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