आदरणीय साथिओ,
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वाह ! वाह! बरखा जी बहुत बढ़िया
बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर, बधाई आपको आ
" शिकवा "
( लघुकथा )
वैसे तुमसे बात करने में मुझे कभी कोई भूमिका की ज़रुरत तो न होती थी।
लेकिन आज क्यों मुझे बात शुरू करने से पहले शब्द ढूंढने पड़ रहे हैं ?
और फिर ये शब्द ही , क्यों ?
पहले तो हम बिना कुछ कहे आँखों ही आँखों में बहुत सारी बातें कर लिया करते थे।
आँखें ख़ुशी भी बयां करतीं थीं और शिकायत भी। ग़ुस्सा भी तो बहुत करतीं थीं न तुम्हारी आँखें।
अरे हाँ , डाँट डपट खाने की तो जैसे आदत सी हो गई थी इन आँखों से।
ग़ज़ब का प्यार झलकता था जब तुम इशारों ही इशारों में डांट देतीं थीं। बहुत अपनापन सा था उनमें।
मैं माफ़ करने के लिए कहता तो तुम एक पल में माफ़ भी कर देतीं और ज़ोरदार ठहाका लगा कर हंसतीं , जैसे तुमने सारा जग जीत लिया हो।
देखा ना , ... इन सब में शब्दों की कोई दखलनदाज़ी कहाँ थी ?
रहने दो नीरज , कुछ बातें अनकही सी ही सही ... ... ...
क्योंकि बहुत से सवालों के जवाब , " मैं ने देखे हैं , तुम्हारी आँखों में अटके हुए !!! "
क्या कह रही हो सोरवी ," मैं कुछ समझा नहीं ?"
" जल्द ही समझ जाओगे " , नीरज।
इतने दिन हो गए साथ रहते हुए। खूब अच्छी तरह समझतीं हूँ , तुम्हें ... ... ...
तुमने उन अधिकारों का मज़ाक उड़ाया है , जो मैं ने तुम्हें दे रखे थे।
तुम एक तरफ तो मुझ से प्यार जताते रहे और आफिस में ???
" ऑफिस में क्या ?" सोरवी।
कुछ नहीं ... ,
पहली 11 पंक्तियों में विराम-विह्नांकन की अनुपस्थिति से कौन क्या कह रहा है, समझ नहीं आ पाया.
//वैसे तुमसे बात करने में मुझे कभी कोई भूमिका की ज़रुरत तो न होती थी।
लेकिन आज क्यों मुझे बात शुरू करने से पहले शब्द ढूंढने पड़ रहे हैं ?
और फिर ये शब्द ही , क्यों ?
पहले तो हम बिना कुछ कहे आँखों ही आँखों में बहुत सारी बातें कर लिया करते थे।
आँखें ख़ुशी भी बयां करतीं थीं और शिकायत भी। ग़ुस्सा भी तो बहुत करतीं थीं न तुम्हारी आँखें।
अरे हाँ , डाँट डपट खाने की तो जैसे आदत सी हो गई थी इन आँखों से।
ग़ज़ब का प्यार झलकता था जब तुम इशारों ही इशारों में डांट देतीं थीं। बहुत अपनापन सा था उनमें।
मैं माफ़ करने के लिए कहता तो तुम एक पल में माफ़ भी कर देतीं और ज़ोरदार ठहाका लगा कर हंसतीं , जैसे तुमने सारा जग जीत लिया हो।//
देखा ना , ... इन सब में शब्दों की कोई दखलनदाज़ी कहाँ थी // यदि यह संवाद नीरज का है तो बेहद लम्बा और उबाऊ है.
बहरहाल आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारें आ० मुज़फ्फर इकबाल सिद्दीक़ी जी.
बहुत सुंदर रचना विषय पर, बहुत बहुत बधाई आपको आ
अच्छी लघु कथा , बधाई आपको ।
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