आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय रश्िम जी । बहुत लंबे समय आयोजन में आपकी सहभागिता हर्ष का विषय है। प्रदत्त विषय पर प्रस्तुत लघुकथा एक अच्छा प्रयास है। लघुकथा का प्रस्तुतिकरण वाकई प्रशंसनीय है। सुनील भाई द्वारा इंगित लंगड़ाते, चलते कमरे बिन्दु से पूरी तरह सहमत । परन्तु पात्रों के नामों के बारे में 'नीला' नाम- यह भी संभव है कि नीला का नाम नीलम हो परन्तु घर पर उसे नीला कहा जाता हो। मुझे लगता है कि मॉं का नाम शीला देने या न देने से लघुकथा की संप्रेषीयता पर कोई असर नहीं पड़ता तो यदि मॉं ही लिखा रहने दिया जाता तो भी कथा प्रवाह में रहती । लघुकथा के अंत में नीला का घर छोड़ जाना नाकारात्मक संदेश दे रहा है। ये तो समस्या का कोई हल न हुआ। पहले तो सास इस दुख से जूझती रही और अब बहू। उसका हल तो कुछ नहीं निकला । बेशक हल निकलना लघुकथाकार का काम नहीं है परन्तु प्रदत्त विषय 'उजाला' को देखते हुए कोई आशा की किरण अवश्य दिखाई देनी चाहिए थी । बहरहाल सहभागिता हेतु शुभकामनाएं । सादर
नशे की अग्नि नें कई घरों का उजाला डस लिया है। इस ओर ध्यानाकर्षण हेतु आपकी कलम को साधूवाद
ओह, द्रवित करती संवेदनशील रचना।विषय के साथ न्याय करती बेहतरीन प्रस्तुति, बधाई
आदरणीया रश्मि जी, बहुत सुन्दर कथा| संवाद के माध्यम से बेहतरीन प्रस्तुति| सबकुछ बिल्कु स्पष्ट| मुझे फिल्म "तू स्टेट्स" का दृश्य याद आ गया|
आ. रश्मि जी, आपकी लघुकथा इतनी अच्छी है कि उसमें निहित सभी दोष छुप जाते हैं. फिर भी :
1. //एक पैर पर लंगड़ाते ,चलते कमरे से बाहर आया।// "लंगड़ाते हुए कमरे से बाहर आया।"
2. //अब वो कब तक बिखरे टुकड़ों को उठाती रहेगी ।//
3. //घाव पर लगी हल्दी से अचानक उपजी चीस से महेश तिलमिला गया।// यहाँ "चीस" से क्या आशय है?
4. बहू का "नीला" नाम मुझे ठीक नहीं लगा. माँ के पात्र को नाम देने की भी कोई आवश्यकता नहीं थी.
आपकी कथा का अन्त बहुत अच्छा है. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
बहुत ही अच्छी रचना कही है आदरणीया रश्मि जी, इस सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें| //अचानक उपजी चीस से महेश तिलमिला गया// - चीस अथवा टीस?
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