आदरणीय साथिओ,
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आ. मोहम्मद आरिफ़ जी, बहुत ही बढ़िया और संदेशप्रद लघुकथा लिखी है आपने. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई प्रेषित है. कुछ बातें आपसे कहना चाहूँगा :
1. //मॉम ,क्या मैं अपना निर्णय खुद नहीं ले सकती ?//
2. //पोस्ट ग्रेज्युएट हूँ , बालिग हूँ ।// या तो पोस्ट ग्रेजुएट रखिए या तो फिर बालिग़. (हालाँकि यह संवाद है, इसलिए चल भी सकता है.)
3. कोर-कसर
4. //मेरे अंदर एक अंधकार का घेरा है // मेरे अन्दर अन्धकार का एक घेरा है.
5. //"मगर कैसे ?"// क्या यह संवाद बिना "मगर" के लिखा जा सकता है? देख लीजिएगा.
6. //अब सुमन की आँखों से आँसू छलकने लगे ।// इस पंक्ति में परिवर्तन की आवश्यकता है क्योंकि जिस माँ ने दादी को वृद्धाश्रम पहुँचाने में भूमिका निभायी हो उसकी आँखों से तुरन्त आँसुओं का छलकना थोड़ा अस्वाभाविक लग रहा है. यहाँ आप अपनी बात किसी दूसरे तरीके से कह सकते हैं.
लघुकथा में विषय (उजाला) को देखते हुए दीवाली का प्रयोग बेहद पसन्द आया. फीता काटने की अलग से बधाई. सादर.
बहुत ही अच्छा सन्देश देती हुई रचना कही है आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी साहब, इस सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें| रचना में गुरुजनों और सुधीजनों ने बहुत कुछ सुधार बता दिया है, जिससे रचना बेहतरीन हो सकती है| रचना की पहली पंक्ति में //समीक्षा ने बड़े आत्मविश्वास से अपना पक्ष रखा।// - पक्ष रखा मैनें अधिकतर वहां पढ़ा है जहाँ पर बातचीत पहले ही से हो रही हो, मेरी जिज्ञासा है कि क्या बातचीत की शुरुआत //पक्ष रखने// से हो सकती है?
//मेरे अंदर एक अंधकार का घेरा है// के स्थान पर //मेरे अंदर अंधकार का एक घेरा है// अधिक उचित प्रतीत हो रहा है| इसके अतिरिक्त मेरे अंदर की जगह //हमारे घर// कर दें तो क्या रचना पाठकों की उत्सुकता अधिक बढ़ा सकती है (यह इसलिए भी दिमाग में आया क्योंकि रचना के अंत में रोशन घर हो रहा है)| सादर विचारार्थ,
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