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ग़ज़ल,,,,में अपनी हसरतें,,,,,

1222/1222/1222/1222

जो सच हो ही नहीं सकता वो सपना छोड़ आया हूँ
में अपनी हसरतें सहरा में तंहा छोड़ आया हूँ।

ख़िरद ने जबसे जोड़ा है हक़ीकत से मेंरा रिश्ता
तख़य्युल को ख़लाओं में भटकता छोड़ आया हूँ।

ज़रूरत मुझको ले कर आ गई परदेस में लेकिन
में अपने घर में इक पुतला अना का छोड़ आया हूँ।

सबब जिसके हुए जाते थे अपने ही मेंरे दुश्मन
वो चाँदी छोड़ दी मैंने वो सोना छोड़ आया हूँ।

वो इक लम्हा जो गफ़लत में तेरी चाहत के बिन गुज़रा
कई सदियाँ हैं शाहिद में वो लम्हा छोड़ आया हूँ।

ये मुमकिन है के अब उसका रवैया ही बदल जाऐ
में जिस उहदे पे फ़ाइज़ था वो उहदा छोड़ आया हूँ।

सहर हिजरत में यूँ पहलू दयानत का नहीं रक्खा
जसद तो साथ है मेंरे वो साया छोड़ आया हूँ।

मौलिक /अप्रकाशित

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Comment by Afroz 'sahr' on October 20, 2017 at 2:08pm
आदरणीय बृजेश जी आपको रचना पसंद आई आपका आभार प्रकट करता हूँ। सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 20, 2017 at 9:21am
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय अफ़रोज़ जी..हार्दिक बधाई
Comment by Afroz 'sahr' on October 19, 2017 at 1:46pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी पर आपका शुक्रगुज़ार हूँ।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 19, 2017 at 9:46am
जनाब अफरोज साहब,
मज़ा आ गया, ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारक़बाद.
Comment by Afroz 'sahr' on October 19, 2017 at 9:40am
आदरणीय अजय तिवारी जी ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया,,,,
Comment by Ajay Tiwari on October 19, 2017 at 7:43am

आदरणीय अफरोज साहब,

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. शुभकामनाएं .

सादर 

Comment by Afroz 'sahr' on October 18, 2017 at 9:42pm
आदरणीय समर साहिब आपने ग़ज़ल को वक़्त दिया । ग़ज़ल को आपकी सराहना मिली ये मेंरी खुश नसीबी है। मेंरी रचना सार्थक हूई।,,,,,सादर,,,
Comment by Samar kabeer on October 18, 2017 at 5:38pm
जनाब अफ़रोज़'सहर'साहिब आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Afroz 'sahr' on October 18, 2017 at 12:12pm
आदरणीय निलेश जी ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया,,,,
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 18, 2017 at 11:39am

आ. अफरोज़ साहब..
अच्छी ग़ज़ल हुई है..बधाई

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