आदरणीय साथिओ,
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अलग अंदाज़ की कथा| हार्दिक बधाई आ जानकी सखी| एक उत्सुकता है जानने की आपने लिखा है कोबरा ने डस लिया हो , जहाँ तक मुझे ज्ञात है कोबरा काटता है| सादर|
सूफियान का चरित्र बिलकुल वैसा ही है जैसे तपती हुई दोपहरी में ठण्डी हवा का झोंका हो. सच में ऐसी घटनाएँ से कई बार एकतरफा सोच की धुंध छंट जाया करती है. बहुत ही बढ़िया लघुकथा कही है प्रिय जानकी जी, जिसके लिए आपको हार्दिक बधाई देता हूँ.
वाह वाह आपकी कोमल सारगर्भित शैली का एक और नमूना , कथानक तो है ही उसके ऊपर शिल्प सोने पर सुहागा हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीया जानकी जी
उम्दा लघुकथा है आ. जानकी वाही जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
ट्रेन में सीटों को लेकर एसा घमासान बहुत बार आँखों से देखा बहुत ही सुंदर सजीव चित्रण किया है आपने जानकी जी .इस सुन्दर लघु कथा के लिए बहुत बहुत बधाई आपको
हार्दिक बधाई आदरणीय जानकी जी ।बहुत प्यारी लघुकथा।
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