आदरणीय साथिओ,
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आपकी मुक्तकंठ प्रशंसा और ज़र्रानवाज़ी का हृदय से आभारी हूँ आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. शीर्षक पर मैंने भी काफी विचार किया था. यदि आपके ज़हन में इससे बेहतर कोई शीर्षक आता है तो अवश्य साझा कीजिएगा. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
सादर आदाब आ. समर कबीर सर. लघुकथा को पसन्द करने के लिए आपका आभारी हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
स्त्रियों और भारत माँ की दयनीय दशा करने के लिए जिम्मेदार माँ के ये भटके हुए बेटे ही है, जो दुर्दशा कर रहे है | बहुत सुंदर और मार्मिक लघुकथा के लिए बधाई श्री महेंद्र कुमार जी | किन्तु ये सुबह के भूले शीर्षक में अंतर्गत आती है क्या ? विशेषज्ञ ही बताएँगे |
हार्दिक आभार आ. लक्ष्मण रामानुज जी. यह लघुकथा प्रदत्त शीर्षक के अन्तर्गत इसलिए आती है कि इसमें एक माँ अपने बेटों का यह सोचते हुए इन्तज़ार कर रही है वह कि भटके (भूले) हुए हैं और शाम तक लौट आएँगे. उम्मीद है बात स्पष्ट हुई होगी. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
बहुत-बहुत शुक्रिया आ. तस्दीक़ अहमद जी. सादर आभार.
भाई महेंद्र कुमार जी, लाजवाब कथा हुयी है. पूरा द्रिध्य आँखों के सामने घूमता हुआ नज़र आया. विद्वानों का मत है कि यदि लघुकथा लिखी हुई या कही हुई न लगे बल्कि घटती हुई लगे तो माना जाना चाहिए कि वह एक सफल रचना है. उस लिहाज़ से यह कथा बेहद प्रभावशाली हुई है जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
बहुत-बहुत शुक्रिया सर. लघुकथा आपको अच्छी लगी, लेखन सार्थक रहा. //विद्वानों का मत है कि यदि लघुकथा लिखी हुई या कही हुई न लगे बल्कि घटती हुई लगे तो माना जाना चाहिए कि वह एक सफल रचना है.// आपकी इस बात का मैं भविष्य में पूरा ध्यान रखूँगा. इस मूल्यवान मन्त्र और लहुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
सादर आभार आ. शशि जी. धन्यवाद.
बहुत ही बढ़िया लघुकथा हुई है आदरणीय महेंद्र जी| बेहतरीन शिल्प और चित्रण हुआ है, बधाई स्वीकारें आदरणीय|
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