आदरणीय साथिओ,
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अच्छी लघुकथा | शुरू में तो समझ नहीं आई कहना क्या चाह रहे है क्या वार्निग दे रहे है चाय पिल्लाकर | किन्तु समापन अछा हुआ और प्रस्तुती आदर्श पर जाकर समाप्त हुई | बहुत बह्सुत बधाई साहब !
आ.उस्मानी जी शीर्शकानुकूल सार्थक रचना. मेरे निजी मतानुसार प्रारंभिक संवाद कुछ ज्यादा महसूस हो रहे. इन्हे संपादित कर रचना को कुछ आसान किया जा सकता है वरना मुझे तो रचना के तह तक जाने के लिए २-३ बार पढना पडा
आज के प्रगतिशील दौर में भी वही पुराने ख्यालात बढिया कटाक्ष किया आद० उस्मानी जी संवाद बहुत अच्छे हैं बढिया लघु कथा के लिए बहुत बहुत बधाई
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