आदरणीय साथिओ,
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बहुत-बहुत धन्यवाद सर. सभी साथियों सहित आपका भी हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन है. सादर.
सादर अभिवादन व आपका व अन्य सभी साथागण का आयोजन में स्वागत है आद०योगराज प्रभाकर जी ।
नर्क
‘‘क्या जिसका कोई देश न हो उसका कोई घर भी नहीं होता?’’ बिना पेट वाली वह लड़की अभी भी उस सवाल में ग़ुम थी जिसका अभी तक उसे कोई उत्तर नहीं मिला था।
अभी कुछ महीने पहले ही वह अपने पिता के साथ इस देश में आयी थी, सोलह दिन समुद्र में तो बाइस दिन पैदल चलने के बाद। बड़ी मुश्किल से दोनों की जान बची थी। थोड़ी राहत उन्हें तब मिली जब वो शरणार्थी शिविर में पहुँचे। यहाँ उनके जैसे हज़ारों थे।
‘‘क्या हुआ था तुम्हारे साथ?’’ किसी ने उसके पिता से शिविर में पूछा। ‘‘क्या होगा, वही जो सबके साथ हुआ।’’ और उसके पिता शून्य में खो गये। ‘‘जी भर गया हो तो मारो इन सालियों की छाती पे गोली। इन्हीं से ये सपोलों को दूध पिलाती हैं।’’ फौजी अफ़सर ने जैसे ही अपने सिपाहियों से कहा पूरे गाँव में गोलियों की आवाज़ गूँज उठी। बच्चों के गले रेत दिये गये। पहले से बांधे गये युवकों और बुज़ुर्गों को गोलियों से भून दिया गया। बहुत से लोग मार कर नदी में फेंक दिये गये। जहाँ जो भी सामान मिला उसे लूट लिया गया और फिर घरों में आग लगा दी गयी। हर तरफ़ लाशों पर लाशें बिछी थीं। बड़ा ही ख़ौफ़नाक मंज़र था। कुछ एक लोग जो जंगल में भाग कर अपनी जान बचा सके उन्हीं में ये दोनों भी शामिल थे।
शिविर में अक्सर लोग आपस में बातें किया करते थे, ‘‘आख़िर हमारी ही सरकार और हमारे ही सेना हमारे साथ ऐसा कैसे कर सकती है?’’ हालात यहाँ बेहतर तो थे पर अच्छे नहीं। लोगों को न तो भरपेट खाना ही मिल रहा था और न ही साफ़ पानी। उनके पास कोई रोज़गार भी नहीं था। नागरिकता तो थी ही नहीं। बच्चों को भी स्कूल में पढ़ने का कोई अधिकार नहीं था। ‘‘मेरे पास दस एकड़ ज़मीन थी पर अब मैं एक बोतल पानी भी ख़रीद कर नहीं पी सकता।’’ अपनी एक टांग गँवा चुका शख़्स अक्सर यह कहते-कहते रो पड़ता था। ऐसी ही न जाने कितनी कहानियाँ लोगों की आँखों में तैर रही थीं।
तभी एक लड़का उस बिना पेट वाली लड़की के पास दौड़ते हुए आया और चीख़ते हुए बोला, ‘‘जल्दी चल तेरे पिता को पुलिस वाले उठा ले गये हैं।’’ वह बिना एक भी पल गँवाये वहाँ से भागी। उसके पीछे वह लड़का भी चिल्लाते हुए दौड़ रहा था, ‘‘तेरे पिता आतंकवादी हैं क्या? तेरे पिता आतंकवादी हैं क्या?’’
अचानक काग़ज़ का एक टुकड़ा उड़ते हुए उस लड़की के मुँह पर आया और चिपक गया। लड़की वहीं औंधे मुँह गिर गयी। उस काग़ज़ में गुलाबी रंग से परियों की कहानी छपी थी पर वह धूल से इतनी ज़्यादा सनी थी कि उसे पढ़ा नहीं जा सकता था।
(मौलिक व अप्रकाशित)
राजनीति का घिनौना सच दिखाती सुंदर रचना के लिए बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी .
आ० नीड की ओर का भाव इस कथा में कितना है इसे गुणिगण ही बताएंगे . सादर
रचना पर आपकी उपस्थिति के लिए हृदय से आभारी हूँ आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन सर. सादर.
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय ओमप्रकाश जी. हार्दिक आभार. सादर.
ओह, बेहद त्रासद कथानक पर लिखी गयी एक बहुत प्रभावी रचना, पंच लाइन बहुत प्रभावित करती है| बहुत बहुत बधाई इस प्रभावपूर्ण रचना से आयोजन की शुरुआत करने के लिए आदरणीय महेंद्र जी
उत्साहवर्धन हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय विनय जी. आभारी हूँ. सादर.
जनाब महेन्द्र कुमार साहिब ,प्रदत्त विषय पर सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।
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