आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी
गोष्ठी में आपकी रचनाओं से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया उम्दा भावपूर्ण रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी। इस रचना की ख़ूबी यह है कि इसमें ख़ूबसूरत अतीत भी है नीड़ का और समसामयिकता भी! पीड़ा है और विचारोत्तेजक संदेश भी। दूसरी बात यह कि इस रचना में कुछ वाक्यांश कहे-अनकहे में बहुत कुछ कह रहे हैं, जैसे कि ://इतना पुराना गाना कैसे याद आ गया //; //“यस आई डूI” //;
//गोरों से भी दस कदम आगे वाले गोरे बन गए होI//; //एक पाकिस्तानी के पिता के साथ आज कल बाउजी की गहरी छन रही हैI//; // घर की याद आ रही है I//; व
//आप उन लोगों के साथ ज्यादा दोस्तियाँ मत बढाओ बाउजीI कई बार इन लोगों के धोखे....// शीर्षक प्रभावित नहीं कर सका, हालांकि अच्छा है!
सादर।
कथा के मर्म पर सटीक नज़र रखकर टिपण्णी करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी ...शीर्षक को लेकर आपकी टिपण्णी से मै भी सहमत हूँ
हार्दिक आभार आदरणीय वीरेंद्र वीर मेहता जी
“ डज़ एनी बडी नो हिम ?’’ गोरा पुलिस वाला कड़क आवाज़ में पूछ रहा थाI
कुछ दिन से वो बाऊजी से खुलकर बात करने...
आ. प्रतिभा मैम, मुझे लगता है कि लघुकथा यदि कुछ इस तरह से शुरु होती तो अतीत और वर्तमान का भेद जो थोड़ा अस्पष्ट है, स्पष्ट रहता. साथ ही, कालखण्ड दोष की जो सम्भावना बन रही है, वो भी न रहती. थोड़े से संपादन से या कमी दूर हो जाएगी. इसके इतर, यह एक सशक्त लघुकथा है. पढ़ते हुए अच्छा लगा. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
जिस तरह से आप कह रहे हैं पहले मैंने भी कथा का आरम्भ इसी तरह करने के बारे में सोचा था पर बनते बनते फॉर्मेट दूसरा बन गया ..वैसे कालखंड दोष जैसा यहाँ कुछ नहीं है कथा एक ही समय में घटित हो रही है सड़क के किनारे घायल मोहम्मद के पास. .कथा पर समय देकर अपनी विस्तृत टिपण्णी से इसका मान बढ़ने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र जी
प्रा नही "भ्रा"
हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा पांडे जी।दिल को बहुत करीब से छूकर निकलती हुई लाजवाब लघुकथा।वैसे भी आपकी लघुकथाओं का शिल्प और भाषा का स्तर उच्च कोटि का और प्रशंसनीय होता है,जो पाठक को मंत्रमुग्ध कर देता है।
इस उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी
मुझे पंजाबी नहीं आती .पाण्डे साहब से पूछा था उन्होंने भ्रा ही कहा होगा मैंने प्रा सुना, आपकी विस्तृत टिपण्णी की प्रतीक्षा रहेगी
विषय बहुत बढ़िया है और आपने उसे बखूबी निभाया है, बस प्रस्तुतीकरण में थोड़ी और मेहनत की जरुरत थी जिससे उलझन नहीं होती| बहरहाल आपकी रचनाएँ पढ़ना बहुत सुखद होता है, बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिए
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