आदरणीय साथिओ,
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जनाब अजय गुप्ता जी आदाब,प्रदत्त विषय।पर बढ़िया लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय अजय जी ,बधाई इस रचना के लिए ,सादर
पुरुषवादी सोच पर प्रहार करती बढ़िया लघुकथा कही है आपने आअर्निय अजय जी. मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
हर दल महिलाओं के नाम पर नारे देता है पर आज तक महिला आरक्षण बिल पास नहीं हुआ ..पुरुष समाज के इस दोहरे चरित्र पर शानदार कटाक्ष हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता जी
यारबाश। * (पराजित योद्धा)
"जब वह बहती हवाओं के साथ अपना कोई गीत गुनगुनाता तो लड़कियाँ तो छोड़ो लड़के भी उसकी घुंघराली जुल्फों के दीवाने हो जाते।"
सामने वाले की उत्सुक निगाहें उसकी ऒर उठ गईं।मानों कह रही हों " फिर क्या हुआ?"
"उसकी बड़ी-बड़ी नीली आँखोँ के जादुई आकर्षण में न जाने कितने गोता खा जाते।
जितना खूबसूरत बाहर से था उतना ही अंदर से।उसके स्फटिक से निर्मल मन की तो न ही कहो, आधी रात को भी किसी दोस्त को उसकी ज़रूरत होती तो बन्दा हाज़िर। यारों का यार था वह।"
" हूँ... उ... 'था ?..." अजनबी बोला-
उसे समझ नहीं आया वह क्यों अजनबियों के सामने अपना रोना लेकर बैठ जाता है। लगा।बियर का सुरूर उस पर भी हावी हो रहा था।
" ना... ना... था, का मतलब ये नहीं कि वह अब इस स्वार्थी दुनिया से दूर चला गया।यहीं है वह।क्या हुआ जो वक़्त के थपेड़ों ने उसे जर्जर कर दिया।वह आज भी किसी मुसीबतज़बां के लिए लड़खड़ाता हुआ हाज़िर हो जाता है।"
सामने वाले की आँखें संकुचित होते देख लम्बा घूँट लेकर बोला-
ना...ना...वह, शराब को तो खांटी जवानी में भी हाथ नहीं लगता था ।सोच रहे हो ये पहेलियां क्यों बुझा रहा हूँ।"
कुछ पल दोनों तरफ गहरी खामोशी छाई रही फिर हाथों के मग को घुमाते हुए अपनी नज़रों से सामने वाले को बींधते हुए फुसफुसाया
" अरे भाई , ये जिंदगी ही एक पहेली है।कभी हँसाती है कभी रुलाती है।मैं आज जो शान से एक बड़े पद पर बैठ कर एशोआराम की जिंदगी गुज़ार रहा हूँ।उसको सीढ़ी की तरह ही यूज़ करके पाया मैंने ये सब।"
अजनबी की खोई नज़रें उसपर गड़ गई।
"अरे भाई, बस खोया- खोया रहता है और जिंदगी का हिसाब-किताब लगाता रहता है।क्या खोया और क्या पाया।शायद सोचता होगा जिंदगी भी क्या निकली ,निल बट्टा सन्नाटा?"
" ओह!तो दिमाग से गया वह?"
ना...ना... पागल भी नहीं है वह, ...बहुत जीनियस था या कहो कुछ ज्यादा ही था तभी न हम कमअकलों की दुनिया में जिंदगी के रिश्ते निभाने के फेर में फेल हो गया।"
"आपकी बातें उलझी हुई हैं।"अजनबी ने पहली बार पूरा वाक्य बोला।
"तुम्हें लगता है मुझे चढ़ गई? नहीं अजनबी, दोस्त से बेवफ़ाई का कांटा जब कभी ज्यादा टीसने लगता है तो बस यहाँ आ जाता हूँ मन का बोझ हल्का करने।तुम जैसे किसी अजनबी के सामने कबूल कर दर्द हल्का कर लेता हूँ।
"तो?"
"नहीं ,नहीं वह हारा हुआ आदमी भी नहीं है। वह तो योद्धा है ।क्योंकि वह तो दूसरों के लिए जिया। "
"जिसने जिंदगी में कुछ न पाया ?वह भी क्या योद्धा?"सुरूर ,अजनबी पर भी चढ़ने लगा।
" मेरा ये पद, ये कॉलेज की सबसे सुंदर लड़की,जो आज मेरी पत्नी है।और भी बहुत कुछ।जिस बूते आज मेरी पहचान है। ये उस यार की पीठ पर पर भौंके छूरे की बदौलत ही है।मुझसे बेहतर कौन उसे पहचानेगा।पर मैं योद्धा नहीं।असली योद्धा तो मेरा यार है वह असली यारबाश था।"
हाथ से नाक और आँख पोछी और खिड़की के काँच से बाहर आती-जाती भीड़ को देखने लगा।
मौलिक एवम अप्रकाशित
आदाब। मुझे यक़ीं है कि एक बेहतरीन लघुकथाकारा बनने के साथ ही आप एक अच्छी कहानीकार/उपन्यासकार भी बन सकेंगी। यह रचना भी ऐसा ही संकेत देती है आपके गंभीर साहित्य-पाठन के साथ ही। विषयांतर्गत बढ़िया रचना कहने के प्रयास में ''कहीं-कहीं" यह रचना हम जैसे पाठकों के लिए कुछ कठिन हो गई है। या फिर तनिक संपादन की आवश्यकता लगती है। विषयांतर्गत बढ़िया पेशकश, बढ़िया शीर्षक के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत बधाई आदरणीया जानकी बिष्ट वाही जी।
तहेदिल से शुक्रिया आ.शहज़ाद जी,आपके मुँह में घी शक्कर,आपकी दुआएँ मुझे लग जाये ये कथा इस शीर्षक के आने से पहले ही लिख दी थी।बस कुछ खयाल आये और शब्दों में ढल गए।हाँ कुछ दुरूह जरूर है पर अनजानी नहीं।इस शीर्षक पर सटीक बैठ रही थी तो पहली बार यहीं पोस्ट की।
बहुत-बहुत शुक्रिया त्वरित प्रत्युत्तर के लिए आदरणीया जानकी बिष्ट वाही जी।
आदरणीया जानकी जी लघुकथा का कथानक अवश्य दुरूह है तथापि, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
हार्दिक आभार आ.सत्यनारायण सिंह जी।
आदरणीय जानकी जी, विषय को परिभाषित करने का अच्छा प्रयास है आपने । लघुकथा की यह दो पंक्तियां /
"नहीं ,नहीं वह हारा हुआ आदमी भी नहीं है। वह तो योद्धा है ।क्योंकि वह तो दूसरों के लिए जिया। "
"जिसने जिंदगी में कुछ न पाया ?वह भी क्या योद्धा?"सुरूर ,अजनबी पर भी चढ़ने लगा।/
कुछ कन्फयूज़ कर रही हैं। पहला संवाद माना कि सुरूर में कहा गया है परन्तु अजनबी का संवाद / जिसने जिंदगी में कुछ न पाया ?वह भी क्या योद्धा? / समझ में नहीं आ रहा । यहां यह प्रभाव आ रहा है कि योद्धा अथवा पराजित योद्धा जबरन भर्ती किया गया है।
लघुकथा का प्रस्तुतिकरण सराहनीय है । सादर शुभकामनाएं ।
हार्दिक आभार आ.रवि सर जी।विस्तृत समीक्षा कर मार्गदर्शन हेतु।
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