आदरणीय साथिओ,
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विषयानुकूल अच्छी लघुकथा है आदरणीय राजेश मैम. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आदरणीया राजेश कुमारी जी प्रदत्त विषय पर सार्थक लघुकथा प्रस्तुति सादर बधाई स्वीकार करें.
हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी।बेहतरीन लघुकथा।
‘हारी हुई बाज़ी ‘
मोहनलाल ने ज्यों ही बेटे से बात करके मोबाइल रखा पत्नी रीमा ने पूछा “कब आ रहा है राहुल ।”
“वो शायद न आ पाए ।” मोहनलाल बोले ।
“क्यों ,ये क्या बात हुई भला इकलौती छोटी बहन की शादी में नहीं आ रहा ।” पत्नी बोली ।
“हाँ कह रहा था कोई ज़रूरी प्रोजेक्ट है , और अमेरिका से बार २ आना संभव भी नहीं है ।”मोहनलाल ने बताया।
“वाह ,जैसे ये अकेले ही जॉब कर रहे है अमेरिका में , दूसरे भी समय २ पर अपने देश आते है न । “पत्नी बोली ।
“कह रहा था रुपए कहे तो और भिजवा देता हूँ ।”मोहनलाल बोले ।
“हमें नहीं चाहिए रुपए ,गुड़िया सुनेगी भाई नहीं आ रहा है तो रो रो कर परेशान कर देगी ।” पत्नी बोली ।
“ग़लती उसकी कहाँ है , मैंने ही तो प्रतिस्पर्धा की इस अंधी दौड़ में उसे बचपन से ही झोंक दिया था ।”मोहनलाल बोले ।
“आप ऐसा क्यों बोल रहे है । “पत्नी बोली ।
“शुरू से ही उसे परिवार की किसी शादी में नहीं जाने देता था , बस स्कूल ,कोचिंग , कॉलेज इसी में उसको लगाए रखा।” मोहनलाल बोले ।
“हाँ सच ही कह रहे हो उसे कभी परिवार में , रिश्तेदारों से घुलने मिलने ही नहीं दिया ,मैं तो दोनो बहन भाई के बीच की नोक -झोंक के लिए तरस ही गयी ।”पत्नी बोली ।
“तभी तो बहन की शादी उसके लिए मायने ही नहीं रखती ।बेटे का कैरियर बना कर उसे तो ज़िंदगी की बाज़ी जीता दी , पर इस दौड़ में ख़ुद बेटे को हार गया ।”मोहनलाल रुँधे गले से बोले ।
मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीया बरखा जी आदाब,
प्रदत्त विषय के साथ भली-भाँति न्याय करती सरल-सरस भाषा-शैली में लिखी गई लघुकथा । संवाद भी पात्रानुकूल । एक बा साझा करना चाहूँगा कि जब पति-पत्नी में वार्तालाप में बार-बार यह कहने की आवश्यकता नहीं कि "मोहनलाल ने कहा ," पत्नी बोली " पाठक स्वयं समझ जाता है जब संवाद दो पात्रों के बीच चल रहा है इनका आपस में क्या रिश्ता.है ।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय आरिफ़ जी ,आपके सुझाव पर ध्यान दूँगी ,आभार ,सादर
अच्छी लघुकथा है आ० बरखा शुक्ला जी, प्रदत्त विषय से भी न्याय हुआ है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय योगराज सर जी ,आगे भी आपका मार्गदर्शन मिलता रहे ,आभार ,सादर
मोहतरमा बरखा जी आदाब,प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय समर कबीर जी ,आभार ,सादर
ऐसा लगता है आदरणीय मंच संचालक महोदय के सम्पादन में प्रकाशित अर्द्धवार्षिक लघुकथा संकलन 'लघुकथा कलश' के छपने के बाद नियमित रचनाकार विधा के लिए अधिक गंभीर होने लगे हैं। एक अहम समस्या पर आधारित विषयांतर्गत बढ़िया प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरमा बरखा शुक्ला जी।
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“शुरू से ही उसे परिवार की किसी शादी में नहीं जाने देता था , बस स्कूल ,कोचिंग , कॉलेज इसी में उसको लगाए रखा।”// यह पंक्ति बहुत कुछ कह रही है। संस्कार घर से ही मिलते हैं। फिर विदेशी नौकरियां ग़ुलामी और क़ैद दे डालती हैं। विदेश पलायन करने वाले पराजित योद्धा से होते हैं या फिर उनके मां-बाप/ परिवारजन!
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय उस्मानी जी ,आभार ,सादर
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