आदरणीय साथिओ,
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हृदय से आभारी हूँ आदरणीय तेज वीर सिंह जी. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया प्रतिभा मैम. हार्दिक आभार. सादर.
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय महेन्द्र जी ,बहुत -बहुत बधाई आपको इस रचना के लिए ,सादर
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया बरखा जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.
अंतिम जंग
“इसकी आँखे छोटी थी,बीनाई भी कमजोर थी फिर भी जमीं से फ़लक तक देख लेता था|
छड़ी लेकर चलता थाफिर भी घर, मुहल्ला, गाँव, शहरसे लेकर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों को लांघता हुआसात समन्दर पार तक की खबर
ले आता था| सियासत के गलियारों में खूब उत्पात मचाया इसने|
सारी दुनिया इसकी इस छोटी सी कलम में समाई हुई थी| हर जंग यह योद्धा इसी हथियार से लड़ता था|
किन्तु आज जिंदगी की जंग हार गया |सब कुछ खामोश है|
देखो इसका अंगूठा और उँगलियाँ झुके हुए हैं एक दूसरे की तरफ, लगता है ये अपने जीवन की अंतिम लड़ाई
को भी लिख कर गया है इस फिजाँ में|
'हाँ' मैं पढ़ सकती हूँ क्योंकि में भी
उसी जंग का एक अदना सिपाही हूँ”
कहते-कहते भव्या ने दो फूल उनके चरणों में समर्पित किये|
पत्रकार “धन्यवाद” कहकर आगे बढ़ गया|
-मौलिक एवं अप्रकाशित
फाइनली हम सभी कलमाकारों/समर्पित पत्रकारों का दर्द इस विषयांतर्गत प्रतीकात्मक बेहतरीन सारगर्भित , उत्कृष्ट व सशक्त सृजन में बाख़ूबी उभर कर गोष्ठी में चार चांद लगा ही गया। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरमा राजेश कुमारी साहिबा।
कुछ एक शब्दों के बीच स्पेस देने में चूक हो गई है।
शीर्षक बहुत ही गंभीर व विचारोत्तेजक और चुनौतीपूर्ण है।
हालांकि "अंतिम" न कहकर अब हमें "निर्णायक जंग" की बात सोचना है।
आद० शेख उस्मानी जी आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ .
अच्छी लघुकथा है आ० राजेश कुमारी जी. शायद आपने मोबाइल पर ही इसे लिखा जिस वजह से इसका फॉर्मेट किसी खुली कविता जैसा हो गया जिससे सम्प्रेष्ण प्रभावित हुआ. बहरहाल हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
हम भी मोबाइल पर ही लिखते और उसी में सेव करते हैं। जो साथी किसी कारण ऐसा नहीं कर पाते, वे चाहकर भी गोष्ठी में सक्रीय भागीदारी नहीं निभा पाते। मोबाइल में अतिरिक्त समय भी लग जाता है टिप्पणियों में।
मोबाइल से टिप्पणी तो बिलकुल नहीं हो पाती उस्मानी जी .आयोजन की कुल तीन रचनाएँ ही खुल पाती हैं
नहीं। मैं तो यह सब औसत एंड्रायड स्मार्टफोन पर ही कर रहा हूं । अधिक रचनायें देखने के लिए मीनू में ' डेस्क टॉप मोड' पर क्लिक करना चाहिए। सादर।
आद० योगराज जी,आपको लघु कथा पसंद आई दिल से बहुत शुक्रगुजार हूँ .आपने सही पहचाना मोबाइल से ही ली है ये लघु कथा .
सच कहूँ तो अभी हाल ही में कवि केदारनाथ सिंह जी के लिए ये कविता लिखी थी जो मोबाइल में सेव थी कहीं पोस्ट नहीं कर पाई थी | लघु कथा का विषय पढ़ते ही मेरे दिमाग में इसी कविता का विषय ध्यान आया कि एक कवि से बड़ा योद्धा कौन हो सकता है .तभी इसको एक गद्य के रूप में ढाल कर लघु कथा का रूप दे दिया आपकी पारखी नजर को सलाम आप से कोई बात नहीं छुप सकती |:-))))
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