आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय विजय शंकर जी,आपका आभार।
बहुत सुंदर और सही बात कही है आपने आदरणीय मनन कुमार जी | हार्दिक बधाई इस बेहतरीन लघुकथा के लिए|
बहुत बेहतरीन सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया। अधिक जानकारी न होने के कारण ज्यादा कुछ नहीं कह सकता हूं, लेकिन बिम्ब लेते हुए अनूठी रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मनन कुमार सिंह जी। भाषा परिवर्तन से भावाव्यक्ति और उस भाषा के संस्कारों में गहरा संबंध कहा जाता है, जिसका ज्ञान व सम्मान किया जाना चाहिए। सादर।
जहाज हम बनायेंगे
पता नहीं कौन से नेता जी थे , टी वी पर उनका इंटरव्यु आ रहा था। वे अपनी बड़ी महान योजनाएं बता रहे थे कि अब जल्दी ही वे अपने चुनाव क्षेत्र को मुम्बई बना देंगे , अपने जिले को पेरिस बना देंगें , प्रांत को सबसे अच्छा प्रांत बना देंगे और देश को सारी दुनिया में सबसे बड़ा देश बना देंगें।
प्रस्तुत बात-चीत से पता चला कि वे किसी रिक्त सीट पर एसेम्बली का चुनाव जीत कर आये थे। इंटरव्यु समाप्त होते ही उसने चैनल बदला , अगले चैनल पर टिंकू तस्लानिया और राकेश बेदी , जो कि सीरियल में जीजा-साले का रोल कर रहे थे , का कॉमेडी सीरियल आ रहा था। इसमें वे दोनों बड़े-बड़े बिजनेस प्लान बनाते हैं और पर्याप्त अनुभव के अभाव में अंत में विफल हो जाते हैं।
चल रहे सीरियल में दिखाया जा रहा था कि जीजा-साले ने किसी तिकड़म से पानी के जहाज बनाने और उसे पेंट करने का ठेका प्राप्त कर लिया था और घर आ कर दोनों खुशी से नाच रहे थे और गा रहे थे , “ जहाज हम बनायेंगे , जहाज हम रंगेंगे , जहाज हम , बनायेंगे जहाज हम रंगेंगे “.
उसने मुस्कुरा कर फिर चैनेल बदल दिया।
मौलिक एवं अप्रकाशित
अनुभव और अर्थ के अभाव के बावजूद भी लम्बी-लम्बी छोड़ देना भारतीय सत्ताधारियों को शगल बन चुका है. मुझे नही लगता कि किसी विकसित देश के नेता ऐसे सब्जबाग अपनी जनता को दिखाते होंगे. प्रदत्त विषय से पूर्णत: न्याय करती हुई इस लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
मैंने तो यह देखा है कि दुनिया में आर्थिक अपराधों में कोई रियायत नहीं होती है और सजाएं बहुत लम्बी लम्बी होती हैं , यदि अपराध किसी राजनेता या किसी पदधारक द्वारा किया गया हो तो उसका कैरियर भी समाप्त हो जाता है। बात केवल नेताओं की नहीं यदि व्यापारी या कोई भी लेनदेन दार झूठ का प्रश्रय लेकर कोई भी डीलिंग करता है तो उसे भी भयंकर संकट का सामना करना पड़ता है। हमारे यहां दोनों परिस्थितियां विवादित बना दी जाती है और प्रकरण सदैव समर्थ पदधारक या व्यापारी के पक्ष में उसके हितों को सुरक्षा प्रदान करता है। कारण यह है कि विश्व के अधिकाँश देशों में लोकतंत्र अपने मूल स्वरुप में स्थापित है जहां people या citizens सर्वोपरि होते हैं , उनका हित सर्वोपरि होता है , उनकों किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचाने वाला दोषी होता है। हमारे यहां राजनैतिक पदधारक कभी गलत होता ही नहीं, व्यापारी भी गलत नहीं होता है। यदि आपने किसी बिल्डर से कभी कोई मकान खरीदा हो तो आपको पता होगा कि कैसे सारे क़ानून उसके हितों की सुरक्षा करते हैं और कैसे ग्राहक ठगे जाते हैं। सारे पैसे चुका देने के बाद भी लोग अपने ही मकान के लिए भटकते रहते हैं। तीन साल की मियाद छह साल में भी पूरी नहीं होती जबकि भुगतान तीन साल में ही हो चुका होता है। ऐसी व्यवस्थित लूट संभवतः कहीं नहीं होगी। उसके बाद भी जो मकान मिलता है उसमें अनेक कमियां होती हैं। शायद बहुत से लोगों को यह पता नहीं होगा कि हमारा देश दुनिया का एक बहुत ही महंगा देश है , जहां अभीतक वह न्यूनतम मजदूरी दर निर्धारित नहीं हो पायी है जिसमें एक व्यक्ति अपने परिवार का भरण-पोषण सम्मानजनक ढंग से कर सके। हम अभी भी हैपी लाइफ इंडेक्स में बहुत पीछे और लाइफ एक्सपेंटेंसी में बहुत नीचे हैं। साहित्य में इन बातों पर भी विचार किया जाना अपेक्षित है। गौर से देंखें तो पाएंगे कि दुनिया में लोगों को सही दिशा दिखाने का काम लेखकों , विचारकों , बुद्धिजीवियों ने किया है , नेताओं ने नहीं , नेता स्वयं बौद्धिक वर्ग से ही सीखते हैं। उनके आसरे बैठे रहने से कुछ नहीं होगा।
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।
जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,प्रदत्त विषय से न्याय करती बढ़िया लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , लघु - कथा पर आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए ह्रदय से आभार , बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय।राइट बंधुओं की याद दिला दी....विमान उड़ाएंगे।
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी , , लघु - कथा पर आपकी उपस्थिति एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए ह्रदय से आभार । सादर।
बस यही चल रहा है आजकल, लोगों को बनाने का काम. बढ़िया तंज प्रदत्त विषय पर, बधाई आपको आ
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी।बहुत अच्छी एवम कटाक्षपूर्ण लघुकथा।
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