आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आपका आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ।कथा पर प्रोत्साहनात्मक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
बेहतरीन लघखथा और प्रदत्त विषय के साथ न्याय करती भी । हार्दिक बधाई आदरणीय कनक हरलालका जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी ।
कनक जी वाह! बहूत बढिया रचना, बधाई आपको .खासकर इन पंक्तियों के लिए//"जंगल में आजकल आदमखोर घूम रहा है जल्दी आ जाना।" सास ने सुबह घर से निकलते समय खबर दी थी।
"उफ्फ ये कमर दर्द..." अब चला नहीं जा रहा था। घर भी जल्दी जाना था। टीले पर बैठ कर उसने चिट्ठी निकाली। जरूर सिपाहिड़े के घर आने की चिट्ठी होगी। साल में एक बार छुट्टी मिलने पर फौजी घर आता था। जो चिट्ठी कभी प्यार का संदेशा लेकर आती थी दो तीन सालों से उसे दहला जाती थी।वह साल भर का भूखा प्यासा घर आता था।
"उफ्फ ये कमर का दर्द.." डर से दहल गई वह।//
वाह वाह
बहुत उम्दा रचना है विषय पर। दाम्पत्य जीवन मे प्रेम भी डर का रूप ले लेता है। इस बात को बेहतरीन तरीके से दिखाया आपने। मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीया कनक जी। रचना को पूर्णतया पति पत्नी प्रेम पर ही केंद्रित किया जाता तो प्रभाव और अधिक उभरकर आता। सादर।
दहशत (डर)
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माँ ने आवाज़ देते हुए कहा, "मुन्नी सवेरा हो गया उठ जा, क्या बकरियाँ चराने नहीं जाना"?
मुन्नी उठ कर माँ के पास जा कर बोली, "मैं जंगल में बकरियाँ चराने नहीं जाऊंगी"
माँ ने डाँटते हुए कहा, "बाप मज़दूरी करता है, इनके दूध से घर का खर्चा चलता है, नहीं जाएगी तो दो वक़्त की रोटी कैसे मिलेगी "
मुन्नी ने सहमे लहजे में जवाब दिया," मुझे बहुत डर लग रहा है, कहीं कोई रेहाना की तरह मुझे भी उठा कर न ले जाए, मेरी अस्मत तार तार करके, क़त्ल करके लाश को जंगल में फेंक दे "
बाप को खाना देते हुए माँ ने कहा," तेरा कहना सही है, सारे गाँव मे दहशत का माहौल है, रेहाना के क़ातिल अभी तक पकड़े नहीं गए"
मुन्नी उदास होते हुए बोली," मुझे क्या आप जान बूझ कर मौत के मुँह में धकेल रही हैं "?
माँ ने सर पर हाथ रख कर कहा," नहीं बेटी, मगर रेहाना के हादसे की वजह से सारे काम तो बंद नहीं हो जाएँगे "
माँ बेटी की बहस के दौरान बाहर अचानक शोर सा सुनाई दिया | मुन्नी के बाप ने बाहर आकर किसी से पता किया |
भीड़ में किसी ने बताया," पुलिस रेहाना के क़ातिल को पास के गाँव से पकड़ कर थाने ले जा रही है "
मुन्नी जो बाहर खड़ी सब कुछ देख और सुन रही थी, फ़ौरन माँ से बोली, "माँ खाना दे दे, बकरियाँ चराने जाना है" |
(मौलिक व अप्रकाशित)
ऐसे हादसों से किसी भी बच्ची को डर लगेगा ही।बढिया तरह से डर विषय को परिभाषित कर रही हैं आपकी कथा।हार्दिक बधाई आपको आ. तस्दीक अहमद खान जी ।
मुह तरमा अर्चना साहिबा , लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
अन्याय का समय पर प्रतिकार भी साहस के संचार में आवश्यक है ।सटीक चित्रण आदरणीय तास्दिक खान जी ।
मुह तरमा कनक साहिबा, लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
नकारात्मक सोच से सकारात्मकता को उभारती बढ़िया प्रेरक रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।
जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब, लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
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