आदरणीय साथिओ,
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संबंधों के बनते बिगड़ते समीकरणों को इस लघुकथा के माध्यम से बख़ूबी उभारा है बबिता गुप्ता जी। मुझे रचना का अंत बहुत अच्छा लगा, वरना आम तौर पर लेखक अंत में (उपेक्षित) माँ-बाप को ही स्टेज पर बुला लिया करते हैं, मगर आपने अप्रत्याशित अंत करके लीक को तोडा है। रचना में सम्प्रेषणीयता और बेहतर की जा सकती है। आप अभ्यासरत रहें और प्रयासरत रहें। इस अच्छी लघुकथा पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
हार्दिक आभार सरजी,रचना पसंद करने के लिए और प्रोत्साहित करने के लिए.
मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,प्रदत्त विषय को परिभाषित करती बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार सरजी,रचना पसंद करने के लिए.
शादी के बाद बहुत कुछ बदलता है।माँ को भी परिस्थति को स्वीकारना चाहिये।एकाधिकार की प्रवृति दुख का कारण बनती है ।बधाई कथा के लिये आद० बबिता गुप्ता जी ।
बढ़िया लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय बबिता जी ,सादर
बढ़िया लघुकथा है आदरणीया बबिता जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। मेरे ख़याल से शीर्षक “रिश्तों के बदलते समीकरण” या “बदलते रिश्ते” रखना बेहतर होगा। सादर।
बदलते समीकरण पर बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता जी ।
पात्रों की अधिकता से बोजिल हो रही है लघुकथा कुछ उलझी हुई सी प्रतीत हुई है| सादर
बदल रहे समीकरण
आज यहाँ लड़की के घर वाले विवाह की तारीख फिक्स करने आये हैं। क्योंकि वह बिटिया की शादी लड़के के शहर में आ कर करना चाहते हैं।
इस लिए जरूरी था कि ये प्रबंध पहले से हो जाए कौन से होटल में मैरिज करनी है और विवाह से इक दो दिन पहले आ कर भी रहना होगा तो कहाँ रहेंगे ?
सभी लोग ड्रइंग रूम बैठे लड़के वालों से सलाह मशिवरा कर रहे हैं। थोड़ी देर बाद ममता चाय ले कर ड्रइंग रूम में दाखिल हुई और चाय परोसने लगी।
तभी ससुर ने कहा,”देखिए, हमारी बहू कितनी अच्छी है, अभी से हमारा मेहमानों का कितना ध्यान रखने लगी है।“
दादी माँ ने सिर की चुनरी ठीक करी, और उसकी आँखे खुली रह गई और वह ये सब देख हैरान होये जा रही है।
"मौलिक व अप्रकाशित"
वाह विषय को एक उम्दा आयाम देती बेहतरीन विचारोत्तेजक यथार्थपूर्णलघु-लघुकथा। हार्दिक बधाई और यूं मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय मोहन बेगोवाल साहिब।
समय के बदलाव का सुन्द प्रस्ततुतिकरण।
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