आदरणीय साथिओ,
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जनाब विनय कुमार जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब, आप तो हमेशा उत्साहवर्धन करते हैं
आदरणीय विनय कुमार जी खबर की शानदार खबर बनाई हैं. हार्दिक बधाई.
बहुत बहुत आभार आ ओम प्रकाश जी
बेहतरीन कथा आदरणीय विनय जी ।
बहुत बहुत आभार आ कनक हरलालका जी
वाह। बढ़िया प्रस्तुति। बधाई हो इस रचना की
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी। यह एक कड़वी सच्चाई है कि जब अपराध अथाह रूप से बढ़ते हैं तो कोई क्रांतिकारी क़दम ही उन्हें रोक सकता है।बेहतरीन लघुकथा।
आदरणीय विनय कुमार जी आदाब,
बहुत ही बढ़िया कथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
अपनी अपनी सोच
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संसद में क्या होता है काका?
-वहाँ देश के लिए कानून बनाये जाते हैं ।
-ओ।और उनका पालन?
-उसके लिये कार्यपालिका होती है,वही मंत्रि-परिषद।
-और न्याय देने के लिए न्यायपालिका,यही न काका?
-हाँ बचवा।तुम तो सब जानते हो।
-पर बाबा(काका),सुना है संसद में काम कम,हो-हल्ला ज्यादा होता है।ऐसा क्यों?
-सब अपने -अपने पहाड़े पढ़ते हैं वहाँ;वही जात-धरम के।
-और संरक्षण(आरक्षण) की बात क्यों छोड़ रहे हैं?
-हाँ रे, वो तो आज की राजनीति का मूल-मंत्र है।
-इससे कुछ भला हुआ भी है,कि बस यूँ ही वक्त जाया हुआ?
-भला हुआ कैसे नहीं?पहले शंकर सवा सेर गेंहूँ उधार लेता था,अब सवा-ढ़ाई किलो मुफ्त में मिल जाता है।लोग-बाग़ खुश हैं।
-मुद्दा चाहे कोई हो,वहाँ झगड़ा होता ही रहता है,क्यूँ?
-होता ही रहेगा।एक पार्टी डरती है कि उसका मुद्दा(खिलौना) दूसरी न झपट ले।उसका लाल खेलेगा कैसे?इसीलिए हर माँ(पार्टी) झनकती-पटकती रहती है।
-अच्छा तो ये बात है!और क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा का क्या,
कि कल जिसे गाली बक रहे थे,उसे आज गले लगाते नहीं थकते हैं सब?
-दूध में पानी मिलाओ,तो पता भी चले।यहाँ तो पानी में दूध मिला मिलता है।परखोगे किसे?
-अच्छा ,वही दाल में काला न हुआ,पूरी दाल ही काली हो जैसे?
-और क्या?
-अच्छा चलिये,हम आजाद तो हैं।
-वो किस तरह?
-अपना निशान( झंडा),अपना गान।
-और अपने निशान के कद्रदान भी कैसे-कैसे!कोई ओढ़े,कोई बिछाये।
-जान निछावर करनेवाले भी तो हैं काका।
- अरे उन्हीं पर तो देश बचा है,वरना कब का रसातल चला गया होता।
-अच्छा काकाजी,हम दुआ करें कि गँव से ऐसी बयार बहे
कि ये जात-धरम के रगड़े-झगड़े सदा के लिए मिट जाएँ।
-उम्मीद भली चीज है,भोला।पर ये नामुराद सियासतदां ऐसा होने देंगे कभी?आग में घी डालते रहते हैं सब।
-काका,वंदे मातरम का बखत है अब,ख़ुशी और उत्साह का।आइये झूमें-गायें..... वंदे मातरम!
-सो तो ठीक है,लल्ला।पर गुजरे सालों में सालों की भेंट चढ़ गए हैं.....वंदे मातरम ....जन गण.....सब।सोजे वतन के मुरीद हो चुके हैं ये नामुराद।फिर भी जब तक जान,तब तक अरमान।वन्दे मातरम!
-वे सब खुद को ही बड़े देशभक्त ठहराते हैं।अपनी-अपनी दृष्टि है।
-अंतर्दृष्टि बचवा,अंतर्दृष्टि,'कहते हुए काका चल पड़े।
"मैलिक व अप्रकाशित"
जनाब मनन कुमार साहिब , प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
आपका आभार आदरणीय तस्दीक
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