आदरणीय साथिओ,
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मुह तरमा नीलम साहिबा, लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
लघुकथा
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समर्पयामि
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बाढ़ राहत दल के स्वयं सेवक एक छत पर फंसे परिवार को निकालते वक्त किसी भी तरह ७७ वर्षीय माताजी को चलने के लिए राजी न कर पा रहे थे ।
" अरे बचवा ,तुम समझत काहे नहीं हो । हम छोटे से रहे जब बियाह कर आये थे । ये रजुवा छोट सा रहा जब वो हमको छोड़ कर चले गए थे । पर हम एकहो दिन उनको छोड़ कर नहीं रहे। रोज भिनसारे उनके फोटो को परनाम कर हमार दिन सुरू होत है ,अउर उनके पांव छू कर सुतल रहत हैं । वो तो अचानक से पानी घुस आया और हम सब छत पर आ गइले । धड़धड़ा के पानी आया रहा सो संदूक खोल नहीं सके ।अब हम ई बाढ़ में उनको अकेले छोड़ कर कबहूँ ना जाई ....!! "
आदरणीय कनक हरलालका जी आदाब,
बहुत ही संक्षिप्त किंतु सारगर्भित कथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करेन ।
कथा पर प्रोत्साहनात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी ।आस्था गहरी होती है विस्तृत नहीं ।
कनक हरलालका जी, लगभग यही दृष्टिकोण प्रत्येक विशेषकर बुजुर्ग का होता हैं वे अपनी जड़ों को आसानी से नही छोड़ पाते।इसे और अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता था।हार्दीक बधाई आपको
उत्साह वर्धन के लिए आभार अर्चना जी । आपके सलाह अनुसार मैं इसके ऊपर पुनः कार्य करने की चेष्टा अवश्य करूंगी।
अपनी परम्पराओं और अपने प्रियजनों (विशेषकर जीवन साथी ) के प्रति मोह और आस्था का जीवंत उधाह्र्ण है आपकी रचना आदरणीया हरलालका जी,, लेकिन मैं भी आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी से सहमत हूँ कि आप इसे और प्रभावी बना सकती थी, बरहाल उम्दा भागीदारी के लिए हार्दिक आभार स्वीकार करे...
उत्साह वर्धन एंव कथा पर समय देने के लिए आभार वीर जी । मैं इसे पुनः ठीक करने का प्रयास करती हूं ।
सुन्दर और बढ़िया रचना विषय पर, पुराणी पीढ़ी में आज भी यह सब देखा जा सकता है. बधाई आपको इस रचना के लिए आ कनक हरलालका जी
कथा पर समय देने एंव प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय विनय जी ।
गागर में सागर.
कम शब्दों में आस्था की पराकाष्ठा को ब्यान करती मार्मिक रचना.
बधाई कनक जी
आ0 अजय गुप्ता जी प्रोत्साहनात्मक समीक्षा के लिए आपका हार्दिक आभार ।
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