साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....
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हार्दिक आभार आ. अजय तिवारी जी
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है भाई शिज्जू जी, शेअर दर शेअर दाद और मुबारकबाद स्वीकार करें.
आपका तहेदिल से शुक्रिया आ. योगराज सर
जनाब सकूर साहब बेहतरीन ग़ज़ल हुई है तहेदिल से बधाई ।
शुक्रिया आ. नवीनमणि त्रिपाठी जी
आदरणीय शिज्जू जी ...बहुत बहुत बधाई आपको, पांच शेर और पाँचों नगीने..ज़बरदस्त ...लाजवाब...ढेर सारी दाद कबूल कीजिये|
उत्साहवर्धक शब्दों के लिए आपका हार्दिक आभार आ. राणा प्रताप सिंह जी
इस ग़ज़ल पर भी आप दाद बटोर ले गए, बहुत बहुत बधाई भाई शिज्जु शकूर जी.
उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आ. गणेश जी बागी जी
हुस्न जलवे दिखा गया है मुझे!
ख़ुद से ग़ाफ़िल बना गया है मुझे !
अबरू-ए-ख़म दिखा के वो देेखो
मह्व-ए-हैरत बना गया है मुझे!
इक तबस्सुम से सुर्ख़ होंटों के!
बाज़ी-ए-दिल हरा गया है मुझे ।
मैरा मुझमें बचा नहीं कुछ भी!
वो मुकम्मल चुरा गया है मुझे!
लब पे पहरे थे, धड़कनों से मगर!
हाल-ए-दिल वो सुना गया है मुझे !
तू न होता तो डूब जाता मैं!
तेरा होना तिरा गया है मुझे!
मैं तो लाइक़ न था मगर "मिर्ज़ा "
यार मेरा निभा गया है मुझे!
"ओबीओ" का है, गोल्डन मिसरा
"सब्र करना तो आ गया है मुझे"
मौलिक एवं अप्रकाशित
जनाब मिर्ज़ा जावेद बैग साहिब आदाब,आपकी दूसरी ग़ज़ल भी उम्दा हुई, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मुझे मिर्जा साहब की ग़ज़ल दिखाई नहीं दे रही है
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