आदरणीय साथिओ,
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विकास से जहाँ सुविधाएँ बढ़ेंगी तो वहीँ पारम्परिक रीतियाँ भी तो प्रभावित होंगी ही। अब इसे दुष्परिणाम कह लें या सुखद परिणाम। अच्छी लघुकथा हार्दिक बढ़ायी आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब।
लघुकथा पर सटीक और सारगर्भित टिप्पटी देकर सफल बनाने का हार्दिक आभार आदरणीया नीलम उपाध्याय जी ।
बहुत ही सारगर्भित लघुकथा कही है आ० मोहम्मद आरिफ़ जी। विकास का एक डार्क पहलू भी है जिसे आपने बहुत कुशलता से इस लघुकथा के माध्यम से उभारा है। मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
लघुकथा पर सार्थक और सटीक टिप्पणी देकर सफल बनाने का हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ।
भौतिक विकास के मूल्य स्वरुप पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था एवं मानव मूल्यों के क्षरण को अभिव्यक्त करती लघुकथा .आ. मोहम्मद आरिफ जी बहुत-बहुत बधाई.
लघुकथा पर सारगर्भित टिप्पणी देकर सफल बनाने का हार्दिक आभार आदरणीया अनीता शर्मा जी ।
विकास के सिक्के के दो पहलू प्रदत्त विषय से न्याय करती शानदार कथा। हार्दिक बधाई आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी
'ढाक के तीन पात'
महिला कल्याणकारी योजनाओं से हुये सामाजिक उत्थान व महिलाओं की स्थिति में आशाजनक सुधार होने पर लाभान्वित समूह की प्रधान और महिलाओं को सम्मानित किया जा रहा था।अंतिम मे अतिथि महोदया ने सम्बोधित किया- 'मेरी आदरणीया बहनों, आप ना केवल शिक्षित हुई, बल्कि आत्मनिर्भर होकर , एक नई सोच विकसित कर रही है।समजात को आगे बडा, अपने आप की स्वामिनी है।बदलाव की दृढ संकल्प शक्ति से ही आपको अब्बल दर्जा प्राप्त हुआ है।बोलिए, मेरे साथ- 'हम बहू नहीं, बहुमत हैं.'
सभी ने जोरशोर से अपनी वाहवाही मे नारे लगाए।कामयाबी के तारीफों के पुल बंधते सुन आपस मे चर्चा करने लगी।
'सरकार ने कितना ध्यान रखा महिलाओं का? नही तो, चूल्हा फूंकते- फूंकते पूरी जिंदगी गुजर जाती.'
'और नही तो का, हमे काहू से भीख ना मागंन पढे, सो धन्धा करने के लिए रूपया उधार देती हैं.'
'हाँ, सही बात है, वो रूपया हमार लाने बहुत काम का है. मिले रूपये से अपनी गाहन रखी खेती छुडवा ली, नही तो पेट कैसे पालते?'
'हाँ, हमनें भी, उन रूपयों से ननद रानी के पीले हाथ कर दिए. हाथ में ये रूपया नही होता तो इस साल भी घर बैठी रहती.'
'सौ टका की साची बात कहत हो बहिन!धन्धे का क्या? अगली दफा, फिर किसी धन्धे के नाम रूपया उठाई लेवे.'
'हाँ. .... हाँ. ...सही तो है! कौन पूछ- परख जांच पडताल करने घर घर आ रहो'?'
'लेकिन. ...तब भी.....कही पकडे ..,...'
'वासे अपनो का कौन सा लेना- देना......मेडम जाने, उनका काम जाने.'
'और नहीं तो क्या? अपने पैर पर खडे होने का ढप्पा तो लग ही गयो...सही कही ना.'और सब अपने अपने प्रमाण पत्रों को देख विजयी हसी हसने लगी।
चर्चा सुन , सोच में पड गई, थोथे महिला उत्थान व विकास के नाम पर मुख्य धारा से केवल कागजों में ही दर्ज हुई है. वास्तव में, अधिकांशतः यथास्थिति जस की तस, वही ढाक के तीन पात. .... बनी हुई हैं,घरवालों के लिए वही काम निकालने वाली मोहरा बनी हुुुई.....
मौलिक व अप्रकाशित
आदाब। बेहतरीन शीर्षक के साथ बहुत बढ़िया कटाक्षपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा। चूंकि दो-तीन से अधिक टंकण-त्रुटियां हैं, अतः शीघ्र सी सुधार लीजिएगा। चाहें, तो सुधार कर पुनः पोस्ट कर दीजियेगा। सादर।
शानदार लघुकथा के लिए बधाई बबीता गुप्ता जी .।
आद० बबीता जी प्रदत्त विषय पर अच्छी लघु कथा लिखी है महिला सशक्तिकरण के अंतर्गत प्रशासन की योजनाओं के कुछ परिणाम ये भी हैं ढाक के तीन पात एक निम्न निर्धन वर्ग को क्या फायदा हुआ और उस फायदे को किस तरीके से उसने उठाया बहुत अच्छी तरह लघु कथा बता रही है .बहुत बहुत बधाई बबीता जी
बढ़िया लघुकथा। नीतियों का परिणाम किस प्रकार कहां जा रहा है। उसपर चिंतन की आवश्यकता को बल देती ।
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