For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-108

परम आत्मीय स्वजन,

             ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 108वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  अहमद फ़राज़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है.

"मैं ने जिस हाथ को चूमा वही ख़ंजर निकला"

2122       1122     1122        22

फाइलातुन  फइलातुन    फइलातुन फेलुन

(बह्र: बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़)

रदीफ़ :- निकला
काफिया :- अर( पत्थर, रहबर, दिलबर, कमतर, घर आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 जून दिन गुरूवार को हो जाएगी और दिनांक 28 जून दिन शुक्रवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 जून दिन गुरूवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 7309

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय आसिफ जी। सादर नमन।

*ग़ज़ल*

न तो गौहर, न वो जौहर, न सुख़नवर निकला।
सब ने जिसको कहा बरतर वही कमतर निकला।।



रफ़्ता-रफ़्ता मेरे अहसास पे नश्तर ये लगा।
मैंने जिस हाथ को चूमा वही ख़ंजर निकला।।(तरह)



जिसकी क़ीमत न ज़माने में लगी हो अब तक।
नौक-ए-नैज़ा पे जो गोया था वही सर निकला।



जिसने दहशत को हराया हो वफ़ा का पैकर।
कर्बला में नबी ज़ादे का ही लश्कर निकला।।



मुख फाड़ेगा जो कलयुग तो ये सतयुग ने कहा।
कंस निकला है जहां पर वहीं गिरधर निकला।।



सर पे जब हाथ यतीमी के है फेरा मैंने।
एक दम आँख से मासूम की कंकर निकला।।



अपने अहसास की गहराई में डूबे आसिफ़।
जिसको समझा था इक आँसू वो समंदर निकला।।

मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय आसिफ भाई , बधाई अच्छी ग़ज़ल कही !

मुख फाड़ेगा जो कलयुग तो ये सतयुग ने कहा ..     इस मिसरे की तक्तीअ कर के देखिएगा !

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत  शुक्रिया आपकी तवज्जो का 

जनाब आसिफ़ ज़ैदी साहिब आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन ग़ज़ल अभी कुछ और समय चाहती है ।

'न तो गौहर, न वो जौहर, न सुख़नवर निकला।
सब ने जिसको कहा बरतर वही कमतर निकला'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।

'रफ़्ता-रफ़्ता मेरे अहसास पे नश्तर ये लगा'

गिरह के मिसरे में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ है,और आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि इस मिसरे में सहीह शब्द "निश्तर" है ।

'जिसकी क़ीमत न ज़माने में लगी हो अब तक।
नौक-ए-नैज़ा पे जो गोया था वही सर निकला'

इस शैर का मफ़हूम(भाव)स्पष्ट नहीं हुआ,देखियेगा ।

'जिसने दहशत को हराया हो वफ़ा का पैकर।
कर्बला में नबी ज़ादे का ही लश्कर निकला'

इस शैर का मफ़हूम (भाव) स्पष्ट नहीं हुआ,ग़ौर करें ।

'मुख फाड़ेगा जो कलयुग तो ये सतयुग ने कहा।
कंस निकला है जहां पर वहीं गिरधर निकला'

इस शैर का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है,तक़ाबुल-ए-रदीफ़ भी है,मफ़हूम (भाव) भी स्पष्ट नहीं है,देखियेगा ।

'सर पे जब हाथ यतीमी के है फेरा मैंने।
एक दम आँख से मासूम की कंकर निकला'

इस शैर में भी कथ्य ठीक से अदा नहीं हो सका ।

'अपने अहसास की गहराई में डूबे आसिफ़।
जिसको समझा था इक आँसू वो समंदर निकला'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।

ग़ज़ल कहने के बाद किसी वरिष्ठ शाइर से इस्लाह ले लेना अच्छा होता है,ख़ैर ! मुशायरे में सहभागिता के लिए आपका धन्यवाद ।

मोहतरम उस्ताद जनाब समर कबीर साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया तवज्जो और ग़ौर ओ फ़िक्र के लिए आपका एक-एक लफ्ज़ सनद व रहनुमाई है । मैं फिर से कोशिश करुंगा के ग़लतियाँ कम से कम हों आप जो इस्लाह कर रहे हैं उससे मुझे भी फ़ायदा है और दूसरों को भी मैं मशकूर व ममनून हूँ । सादर

आदरणीय समर सर आप इतनी अच्छी तरह से विस्तार में एक एक शेर पर टिप्पणी करते है तो ग़ज़ल कहने वालों के साथ गजल पढ़ने वालों के भी ज्ञान में बहुत वृद्धि होती है धन्यवाद

आदरणीय आसिफ साहब, सुंदर गजल कही। ये गजल कुछ समय और मानती है। 

आदरणीय जनाब अरुण कुमार निगम जी बहुत बहुत शुक्रिया आपकी नज़्र ए इनायत का सादर

आदरणीय आसिफ़ ज़ैदी साहिब, मुशायरे में ग़ज़ल की प्रस्तुति पे ढेरों बधाइयाँ। सादर।

मोहतरम तहे दिल से शुक्रिया जनाब 

आदरणीय dandpani nahak जी बहुत बहुत धन्यावाद अपना कमती समय देने के लिये मैंं पूरी कोशिश करूंंगा।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
yesterday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
May 31
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
May 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service