आदरणीय साथिओ,
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आदाब। गुसलखाने में नहाते, 3-4 फ़िल्मी-गीत-तुकबंदी गाते इतराते दो धनवान युवा युगल के रोचक कथोपकथन शैली में लघुकथा कहने की कोशिश की है। मार्गदर्शन निवेदित। रचना पर समय देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब समर कबीर साहिब।
आपने तो गीतों के शब्दों में हेरफेर को ही लघुकथा कह दिया ।क्या यह उचित स्वरूप हैं ? प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आपको आ . शेख शहजाद उस्मानी जी
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।
आदाब। रचना पर समय देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब तेजवीर सिंह जी। रचना संबंधित अपनी बात उपरोक्त व नीचे की टिप्पणियों में कह दी है। मार्गदर्शन निवेदित।
आदाब। विषयांतर्गत युवा युगल की स्वभाविक फ़िल्मी तुकबंदी युक्त कथोपकथन वाली मेरी इस रचना पर समय देकर अपनी राय से. वाक़िफ़ कराने के लिए शूक्रिया आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी।
इस रचना में दो धनी युवा पात्र लिव-इन-रिलेशनशिप में (मुसाफ़िर) रहते हुए नहाते हुए नोकझोंक में फ़िल्मी गीतों की तुकबंदी गाते हुए मस्ताते हुए जीवन का सत्य बोल रहे हैं। एक विसंगति है गीतमय संवादों में। इस विचार से मैं इसेसंवादात्मक/कथोपकथन शैली की लघुकथा समझ रहा हूँ। ऐसे रोचक संवाद वाशरूम की मस्ती में गीतमय अक्सर हो जाया करते हैं न । वरिष्ठजन द्वारा मार्गदर्शन की प्रतीक्षा है।
वरिष्ठजन की टिप्पणियों की प्रतीक्षा है। लघुकथा हुई या नहीं, कारण सहित जानना चाहता हूँ।
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय शेख सरजी ।
लोक-संस्कार
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वह विदा हो गई।सुहागन थी,पर नैहर में थी।पीहर वालों को तीसरे पक्ष से खबर हुई।सब लोग दूर-दूर नौकरी पर तैनात थे।नैहरवाले जरा भी प्रतीक्षा को तैयार न थे।उन्हें उसे जल्दी से जल्दी निपटाने की पड़ी थी।खैर पीहरवाले उतरी लेकर उसका संस्कार करने से संतुष्ट हो सकते थे।उसके आकांक्षी थे। दूसरी तरफ से झिड़क दिया गया।कहा गया कि जो करना था,किया जा रहा है।प्राकृतिक मौत हुई है।एलर्जी हो गई थी बस।इधर लोग कहते कि सुहागन थी।उसका सब संस्कार ससुराल में होना चाहिए।सो पुतला-दहन-प्रक्रिया अपनाई गई।फिर श्राद्ध-कर्म इधर भी शुरू हुआ।उधर चाहे जो हो रहा हो,सो हो।बूढ़ी काकी कह रही थीं कि मुसाफ़िर तो चला गया।अब जिसे जो करना हो,करे।
"मौलिक व अप्रकाशित"
आदाब। विषयांतर्गत बेहतरीन सारगर्भित तीखा सृजन। हार्दिक बधाई जनाब मनन कुमार सिंह साहिब।
जी शुक्रिया।
अन्य शीर्षक भी, कुछ तीखा सा, सोचा जा सकता है। सादर।
मुसाफ़िर तो चला गया।अब जिसे जो करना हो,करे। की सुन्दर अभिवव्यक्ति . हार्दिक बधाई .
आभार आदरणीय।
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